Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

जीवन की मीठी किताब डूबकर पढ़ती हूँ : सूर्यबाला

विशेष बातचीत

हमें फॉलो करें जीवन की मीठी किताब डूबकर पढ़ती हूँ : सूर्यबाला

स्मृति आदित्य

ND
सूर्यबाला, संवेदनशील रचना-संसार का एक जाना-माना नाम है। आपकी अधिकतर रचनाएँ नाजुक अनुभूतियों को निगरही निष्ठुर व्यावसायिकता पर चिंता व्यक्त करती हैं। परिस्थितियों को देखने की उनकी गाँधीवादी दृष्टि है। सकारात्मबदलाव और मूल्यों में बेहतरी के लिए वे विरोध और विद्रोह के स्थान पर विवेक को तरजीह देती हैं। सूर्यबालाजी मानती हकि तेजी से बदल रहे समय में नारी अस्मिता एक चुनौती भरा सवाल है लेकिन उससे भी बड़ी चुनौती यह है कि हविश्व को बचा ले जाएँ। प्रकृति और परंपराओं से मिले मूल्यों को खारिज कर हम खुद ही खोखले हो जाएँगे। उनकशब्दों में कहें तो जीवन की तल्ख, करूण और बहुत मीठी किताब वे डूब-डूब कर पढ़तीं हैं और समयानुसार उसकी प्रूरीडिंग भी करती हैं। लोकप्रिय कथाकार सूर्यबाला से एक मुलाकात :

1 आपकी रचनाओं में बदलते मूल्यों पर चिंता स्पष्ट दिखाई देती है, क्या आप महसूस करती हैं कि भारतीय संस्कृति कदीमक लग रहा है?

सूर्यबालाजी : जी हाँ तभी तो गिरते मूल्यों पर बेचैनी होती है, और किसी ऐसी रचना का सृजन होता है जो आप जैसे पाठकों को याद रह जाती है। भारतीय संस्कृति के साथ जितने भी बदलाव हुए हैं, हो रहे हैं वे चिंतनीय हैं

2 पिछले दिनों हंगामे के बाद मिले महिला आरक्षण ने फिर उस बहस को जन्म दिया, जो यह कहती है कि महिलाओको आरक्षण की जरूरत नहीं है, आप स्वयं को बहस के किस तरफ खड़ीं पाती हैं?

सूर्यबालाजी: मैं बहस में कहीं नहीं खड़ी हूँ, पर विरोध समझ से परे है। मुझे शंका है कि यह सब किसी षडयंत्र का हिस्सा है। या तो समाज में महिलाओं को लेकर भय है या अविश्वास। दोनों को ही दूर करने की जरूरत है।

विगत दिनों ही अदालत ने लिव इन रिलेशनशिप पर फैसला दिया। आपकी रचनाएँ इस तरह के मुद्दों की गहपड़ताल कर चुकीं है, एक लेखिका और विशेषकर भारतीय परंपराओं का आग्रह करने वाली लेखिका इस पर क्या सोचतीै?

पश्चिम की विकृतियाँ है ये और इन दिनों जबकि वहाँ विवाह संस्था को पुरजोर समर्थन मिल रहा है ताकि रिश्तों में स्थायित्व आ सकें तब इस तरह की बातें हैरान करने वाली है।


बदलते दौर का युवा साहित्य से दूर हो रहा है, क्या आप मानती है कि इस दृष्टि से भाषा के स्तर पर होने वाले बदलाव स्वीकार कर लिए जाने चाहिए।

युवाओं को दोष नहीं दिया जा सकता क्योंकि उन्हें हिन्दी पढ़ने को मिल कहाँ रही है? हम उन्हें सिलेबस वैसा दे नहीं रहे कि हिन्दी या साहित्य के प्रति उनका रुझान हो सकें।


क्या आप मानती हैं कि समाज के साथ-साथ साहित्य में भी स्त्री को हाशिए पर रखा जा रहा है?
स्त्री को हर जगह हाशिए पर रखा जा रहा है, लेकिन स्त्री की प्रतिभा हर समय में सोना बनकर चमकी है।


आपके लेखन की सबसे प्रभावशाली प्रेरणा क्या है?
मेरे पाठक।

सूर्यबाला : एक परिचय
जन्म: 25 अक्टोबर 1943, वाराणसी
रचना-समग्र : अब तक 150 से अधिक कहानियाँ, उपन्यास और व्यंग्य
1975 में पहला प्रकाशित उपन्यास मेरे संधिपत्र से चर्चा में रहीं।
विशिष्ट लेखन के लिए कई बड़े पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजी जा चुकीं हैं। 'प्रियदर्शिनी पुरस्कार', 'घनश्याम दास सराफ़ पुरस्कार' तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मुंबई विद्यापीठ, आरोही, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सतपुड़ा संस्कृति परिषद आदि संस्थाओं से सम्मानित।
प्रमुख उपन्यास : सुबह के इंतजार तक, अग्निपंखी, यामिनी कथा, दीक्षांत
प्रमुख कहानी संग्रह :एक इन्द्रधनुष, दिशाहीन, मुंडेर पर, ग्रहप्रवेश, सांझवाती, मानुष गंध, कात्यायनी संवाद,थाली भर चाँद,
व्यंग्य : अजगर करे ना चाकरी, झगड़ा निपटारक दफ्तर, धृतराष्ट्र टाइम्स
धारावाहिक : पलाश के फूल, न किन्नी न, सौदागर दुआओं के, एक इन्द्रधनुष जुबैदा के नाम, सबको पता है, रेस,निर्वासित।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi