शिक्षा और साहित्य का पद्मश्री अलंकरण प्राप्त करने वाली सुनीता जैन, अंग्रेजी और हिन्दी में बेहतरीन कविताएँ लिखतीं है। उनके उपन्यास, लघुकथाएँ, रचनात्मक अनुवाद और आलोचनात्मक विश्लेषण पाठकों की भरपूर सराहना अर्जित कर चुके हैं। कई पुस्तकों का सफल संपादन कर चुकीं सुनीता जैन वर्तमान में आईआईटी दिल्ली में अंग्रेजी की प्रोफेसर हैं। कई पुरस्कारों और फैलोशिप उनके खाते में दर्ज हैं। पेश है संक्षिप्त बातचीत :
कविताओं के विषय कहाँ से चुनती हैं? कविता विषय चुनती हैं ना ही विषय कविता को चुनते हैं, मेरे ख्याल से जब भी किसी विषय को देखकर भीतर से अनायास प्रतिक्रिया हो जाए, वही कविता है।
समाज के भीतर बहुत कुछ ऐसा पनप रहा है जो संस्कृति के लिए नुकसानदेह माना जा रहा है, इन अर्थों में लिव इन रिलेशन को किस रूप में देखती है? यह नितांत निजी मामला है। विवाह का नैतिक आधार बचा नहीं इसलिए ऐसे रिश्ते पनप रहे हैं? इसका विरोध करने वाले मुझे बताए कि तलाक, दो शादी, शादी के बाद के संबंधों पर खामोशी क्यों?
महिला आरक्षण के मुद्दे पर क्या कहेंगी? मैं तो कहती हूँ संसद ही क्यों हर जगह आरक्षण होना चाहिए। क्योंकि आधी आबादी होने के बावजूद 33 प्रतिशत आरक्षण मेंटेन नहीं होता है। महिलाएँ लुप्त प्रजाति नहीं है कि उन्हें आरक्षण दिया जाए बल्कि इसलिए दिया जाए कि इससे अधिक की वे हकदार है।