आध्यात्म यानी सरल जीवन और कुछ नहीं: राम भांड
मात्र आध्यात्म के लिए भारत लौटा एक इंजीनियर
राम भांड, यह नाम उस शख्स का है जिसने आध्यात्म के लिए इंग्लैंड को छोड़कर भारत आना पसंद किया, वह भी उन परिस्थितियों में जबकि परिवार उनके इस फैसले में उनके साथ नहीं था। राम, किसी भी स्थापित आध्यात्मिक संत की तरह परिधान नहीं धारण करते ना ही आध्यात्म उनके लिए एकांत या पहाड़ों में खोजने का ज्ञान है।
वे जिस आध्यात्म को जानते हैं उसे पाने के लिए किसी भी तरह के त्याग की सलाह भी नहीं देते। मुंबई से प्रोडक्शन इंजीनियरिंग, फिर इंग्लैंड का सफर, और फिर 13 वर्ष वहां रहने के बाद मात्र आध्यात्मिक सुख के लिए भारत की मिट्टी को अपनाने का विचार कोई विरला ही कर सकता है। आइए मुलाकात करते हैं, अपने कर्म में ही आध्यात्म की भूमिका तय करते अनोखे व्यक्तित्व राम भांड से।
सवाल : आध्यात्मिक माहौल आपको विरासत में मिला या इसमें आपकी रूचि किसी खास वजह से जाग्रत हुई?
राम भांड : देखिए, मैं एक पारंपरिक महाराष्ट्रीयन परिवार से ताल्लुक रखता हूं। वर्धा में मेरा बचपन बीता। परिवार में संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर के प्रति अगाध श्रद्धा रही। छोटी अवस्था में मुझे उनके अभंग कंठस्थ हो गए थे लेकिन इसे मैं आध्यात्म के प्रति रूचि होने का कारण कम मानता हूं। मैं अपने आध्यात्म के प्रति रूझान का पूरा श्रेय अपने गुरुजी वासुदेव रामेश्वर तिवारी को देता हूं।
सवाल : हम जानना चाहेंगे कि आखिर गुरुजी की वह कौन सी प्रेरणा रही जिससे जिंदगी की दिशा बदल गई?
राम भांड : मैंने वर्धा में ही कंप्यूटर इंस्टीट्यूट खोला, सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन आध्यात्म के प्रति लगाव के चलते मैंने अपने गुरुजी से पूछा कि, मैं साधना कैसे करूं तो गुरुजी ने मुस्कुरा कर कहा, साधना कोई अलग से नहीं होती, तुम्हारा काम ही तुम्हारी साधना है। बस इसी वाक्य ने मेरी जिंदगी को बदल दिया। मैंने हर काम को लगन से करने का राज जाना। आज भी मैं अपना हर काम गुरुजी का समझ कर करता हूं।
मैंने महसूस किया कि मैं जो भी काम यह सोचकर करता हूं कि यह गुरुजी का काम है उसमें मुझे सफलता मिलती है लेकिन जब भी कोई काम मैंने अपने लिए करना चाहा वह सफल नहीं हुआ।
सवाल : क्या इसका मतलब यह हुआ कि आध्यात्म के लिए हर किसी के पास पहले एक गुरु होना चाहिए?
राम भांड : नहीं, यह कतई जरूरी नहीं है लेकिन एक अधिष्ठान केन्द्र सेट करना तो जरूरी है। मेरे मन में गुरुजी हैं लेकिन और किसी के मन में यह मां, पिता, बीवी, प्रेमिका, मित्र, ईश्वर के रूप में हो सकते हैं। गुरु हो तो यह सर्वोत्तम है, ना हो तो प्रेरणा के लिए गुरुत्व किसी में भी प्राप्त किया जा सकता है। मुख्य बात है काम के प्रति समर्पण और एकाग्रता।
सवाल : आध्यात्म क्या है?
राम भांड : यह सुपर साइंस है। जीवन का सरलीकरण है। इसके हर सिद्धांत वैज्ञानिक हैं। आध्यात्म का काफी सारा हिस्सा विज्ञान सिद्ध कर चुका है। मेरे लिए आध्यात्म का अर्थ किसी चीज का त्याग करना नहीं है। मैं जब ऑफिस में होता हूं तब भी आध्यात्म मेरे साथ होता है, जब परिवार के साथ होता हूं तब भी आध्यात्म मेरे साथ होता है। दरअसल यही परेशानी है हमारे यहां, आध्यात्म को जटिल और दुर्लभ बना दिया है जबकि सिर्फ इसे समझने और सहजता से जीवन शैली में अपनाने की जरूरत है।
मैं आपको समझाता हूं, मान लीजिए आप ऑफिस आने में लेट हो जाते हैं तब आप पूरे समय यह सोचते हैं कि पता नहीं आपके बॉस आपके बारे में क्या सोच रहे हैं। जबकि बॉस की सोचने और समझने की अपनी दिशा है। आप नहीं जानते कि वे क्या सोच रहे होंगे या क्या प्रतिक्रिया देंगे। तब उनकी प्रतिक्रिया को लेकर पूर्वानुमान और कल्पनाओं पर आधारित सोच में अपना समय क्यों बर्बाद करते हैं? आध्यात्म यहां मेरे लिए सहयोगी होता है कि मैं जीवन का सरलीकरण कर लेता हूं बॉस को जाकर देरी से आने का कारण बताऊं और अपना काम करने लगूं।
दूसरा उदाहरण लीजिए कि अगर आपको किसी की कोई बात बुरी लगी है तो आपके दिमाग पर असर होता है और दिमाग आपको तुरंत प्रतिक्रिया के लिए उत्प्रेरित करता है। आध्यात्म को जानने के बाद आप किसी भी बुरी बात का प्रभाव दिमाग पर नहीं लेते हैं। आप इग्नोर करना सीखते हैं। अच्छी बातों में ऊर्जा लगाने का महत्व समझते हैं।
तात्कालिक बातों से दिमाग को दूर रखने लगते हैं। मैं भी ऑफिस में नाराज होता हूं लेकिन तुरंत ही उस बात का असर दिमाग से हटा लेता हूं। लोगों को आश्चर्य होता है कि इतनी जल्दी मैं सामान्य कैसे हो जाता हूं। मैं उन्हें समझाने की कोशिश भी नहीं करता क्योंकि यह जो आध्यात्म मेरे भीतर है उसे हर कोई नहीं समझ सकता। आध्यात्म से एक मूड से दूसरे मूड में स्विच करना आसान हो जाता है।
सवाल: इस आध्यात्म के लिए क्या आप कोई विशेष प्रयास करते हैं?
राम भांड : बिलकुल नहीं। कोई पूजा-पाठ नहीं। बल्कि यह स्वयं के साथ जीवन के तालमेल को समझने की प्रक्रिया है। मैं सुबह होते ही सबसे पहले कंप्यूटर ऑन करता हूं। मेल चैक करता हूं। अपने काम की रूपरेखा बनाता हूं। यह सबकुछ इतनी तल्लीनता से करता हूं जैसे यही मेरी साधना है। जब जो काम करता हूं उसे उसी मस्ती के साथ करता हूं। मैंने बताया ना कि हर काम में मेरे मन में यह भाव होता है कि यह गुरुजी का काम है तो मैं उसे बेहतर तरीके से करने में पूरी क्षमता लगा देता हूं। कभी-कभी मन होता है तो ध्यान लगाता हूं वरना उसकी जरूरत नहीं होती। मेरे इस सरलतम आध्यात्म ने मेरी भाषा, शैली, व्यवहार और व्यक्तित्व को बदल दिया है।
सवाल : 13 वर्ष इंग्लैंड में रहने के बाद मात्र आध्यात्म के लिए फिर इंडिया लौटने का फैसला आसान तो नहीं होगा?
राम भांड : मैं झूठ नहीं बोलूंगा। मुंबई से प्रोडक्शन इंजीनियरिंग के बाद 1999 में मैं इंग्लैंड पैसा कमाने के लिए गया था और मैंने कमाया भी लेकिन भारत के मुकाबले मुझे वहां कम काम करना पड़ता था। बस इसी समय आध्यात्म के प्रति मेरी रूचि और अधिक गहरायी या आप कह सकते हैं कि उस वक्त मुझे सोचने के लिए काफी वक्त मिला। मन के संस्कारों की वजह से लौटना जाने से पहले ही तय था लेकिन कब, यह निश्चित नहीं था। वहां सबकुछ अच्छा चल रहा था परिवार सेट हो गया था।
लेकिन मुझे लगा कि अब मैं अपना काम गुरुजी के लिए नहीं कर रहा हूं खुद के लिए करने लगा हूं। मुझे अपनी कंपनी में खासा नुकसान झेलना पड़ा मैं तत्काल समझ गया कि अब मेरे काम करने के तरीके में यह गलती होने लगी है कि मैं खुद को महत्व देने लगा हूं। बस फिर यहां लौटने का फैसला किया तो जाहिर है कि परिवार के लिए मुश्किल था। मैंने भी उनके फैसले का सम्मान किया। आज मेरा परिवार वहीं हैं और मैं उनसे मिलने जाता रहता हूं। यह फैसला इतनी आसानी से मैं आध्यात्म की वजह से ही ले सका।
सवाल : आपकी जीवनसंगिनी 'मीनल भांड' रामकृष्ण मिशन से दीक्षित हैं, कहीं यही तो वजह नहीं थी उनके चयन की?
राम भांड(हंसते हुए) : नहीं, तब तो मुझे पता भी नहीं था कि वे रामकृष्ण मिशन से दीक्षित हैं, उस वक्त इतनी बुद्धि नहीं थी। बेहद ईमानदारी से कहूंगा कि मैंने उनसे शादी इसलिए की क्योंकि वे गुड लुकिंग थी। आज वे अच्छी पत्नी हैं। जब हम अपने अहम आर्थिक दायित्वों से निवृत्त होंगे तब साथ में प्रयास करेंगे कि आध्यात्म सरलतम रूप में लोगों तक पहुंचाएं।
सवाल : इन दिनों आपके कार्यक्षेत्र के दायित्व क्या हैं?
राम भांड : मैं न्यूज भारती में तकनीकी सेवाएं प्रदान करता हूं। इसके अलावा जो भी सेवा भावी संस्था है, उन्हें तकनीकी सहयोग प्रदान करता हूं। वे जो नाम और दाम के लिए काम नहीं करती बल्कि विशुद्ध सेवा के लिए काम करती है। अब मेरा पूरा लक्ष्य आध्यात्म को और गहराई से समझ कर अपने जीवन में उतारना है। आध्यात्म का लिखित शास्त्र है जो मानव मन, बुद्धि, शरीर , चित्त, अहंकार के बारे में बात करता है। मैं चाहता हूं कि आध्यात्म को समझ कर हर कोई सहज जीवन जीएं, हम जितने सरल होंगे जीवन के रास्ते भी उतने ही आसान होंगे।
सवाल : दिल्ली में हुई विभत्स घटना के मद्देनजर आपसे जानना चाहूंगी कि आप उस लड़की की जगह होते तो आध्यात्म के सहयोग से क्या करते?
राम भांड : पहले एक बात उन लोगों के लिए कहना चाहूंगा जिन्होंने यह हरकत की-
'आहार निद्रा भय मैथुनं च
सामान्यमेतत् पशुभिर्नराणाम् ।
धर्मो हि तेषामधिको विशेष:
धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥
अर्थात् आहार, निद्रा, भय और मैथुन यह सब इंसान और पशु में समान है। इंसान में विशेष केवल धर्म है, अर्थात् बिना धर्म के लोग पशुतुल्य है। मैं यहां धर्म का अर्थ ज्ञान से लेता हूं। विभिन्न धर्मों से नहीं। आध्यात्मिक व्यक्ति कभी किसी को तकलीफ देगा ही नहीं। ज्ञान ही हमें पशुओं से अलग करता है।
अगर मैं पीड़िता होता तो उन्हें माफ कर के किसी और के नुकसान के लिए कभी नहीं छोड़ता। जिस स्तर की पाशविकता उन्होंने दिखाई है वह क्षमा के योग्य नहीं है। क्षमा तब ही हो सकती है जब कि उनके इंसान होने या बनने की संभावना हो। इस परिस्थिति में तो यह संभव नहीं।
सवाल : योग और आध्यात्म में क्या अंतर है?
राम भांड : योग आध्यात्म को पाने का एक तरीका है लेकिन योग 100 प्रतिशत आध्यात्म नहीं है। जैसे एक अपराधी भी प्राणायाम कर सकता है। वह निरोगी हो सकता है। उसका मन भी शांत हो सकता है और वह एकाग्रता भी बढ़ा सकता है लेकिन वह योग से अपराध करना छोड़ देगा इसकी कोई गारंटी नहीं। उसकी आपराधिक प्रवृत्ति बदल जाएगी यह भी जरूरी नहीं। आध्यात्म में आत्मा पूर्णत: शामिल होती है। 'मैं' का भाव तो आध्यात्म से ही तिरोहित होता है योग से नहीं।
सवाल : धर्म और आध्यात्म में आप क्या रिश्ता पाते हैं?
राम भांड : विभिन्न धर्मों के माध्यम से यह बताने की कोशिश की जा रही है कि बस उनका धर्म ही आध्यात्मिक है, मैं उसकी निंदा करता हूं। धर्म ने आध्यात्म का खूबसूरत रूप बिगाड़ दिया है। मेरे गुरुजी के यहां हर धर्म के लोग आते थे और आध्यात्म को सीखते थे। गुरुजी वासुदेव रामेश्वर तिवारी जी स्वयं विदेश में रह कर आध्यात्म के लिए भारत लौटे थे। उनका एक ही धर्म था स्वयं को जानना और स्वयं पर समयानुसार नियंत्रण करना। यही आध्यात्म है।
सवाल : आज के युवाओं के लिए आपका संदेश क्या है?
राम भांड : आज के यूथ की एक समस्या यह है कि वे सफलता और असफलता को लेकर भ्रमित है। इस सोच पर उनकी प्रतिक्रिया बड़ी डरावनी होती है। जैसे असफल होने पर वे इतना बुरा मान लेते हैं कि आत्महत्या तक कर लेते हैं। मेरा आध्यात्म कहता है यह सब अस्थायी है, कुछ भी स्थायी नहीं है। आज असफलता पर निराश होकर आप कल के सफल होने का अवसर क्यों खोते हो? डिप्रेशन अस्थायी होता है। आज हार मान ली तो कल की जीत नहीं जीत पाएंगे। हार-जीत सब अस्थायी है। प्रतियोगिता हमेशा स्वयं से रखें तब हार भी आपकी होगी और जीत भी आपकी।
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