विकास के परचम तले खेती हुई लापता : अनुपम मिश्र

Webdunia
पर्यावरणविद् मिश्र से वेबदुनिया की खास मुलाकात
पर्यावरण महज प्राकृतिक संसाधनों से मिलकर नहीं निर्मित होता बल्कि सुखद पर्यावरण बनता है मानव और प्रकृति के बीच परस्पर सहज संबंध से। इसी संबध की नई परिभाषा रच रहे हैं प्रख्यात पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र। वेबदुनिया से संक्षिप्त मुलाकात में अनुपम मिश्र ने बेबाकी से स्वीकारा है कि 'विकास' शब्द को राजनेताओं ने निहित स्वार्थों के तहत् इस्तेमाल किया है।

 
WD


प्रस्तुत है, उज्जवल पर्यावरण की नई सोच को तराशने वाले, परंपरागत दृष्टि को नवीन दिशा देने वाले, पर्यावरण के सिपाही के रूप में पहचाने जाने वाले सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र से वेबदुनिया के संपादक जयदीप कर्णिक की विशेष मुलाकात के संपादित अंश-

अगले पेज पर पढ़ें ... पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र के विचार- विकास का घमंड है हमारे नेताओं में...

( अगले पेज पर देखें वीडियो)

* विकास का घमंड है हमारे नेताओं मे

अनुपम मिश्र - 'विकास' शब्द हर भाषा में पिछले कुछ दिन पहले आया है। हिन्दी की बात नहीं कर रहा हूं, अंग्रेजी में भी प्रोग्रेस या डेवलमेंट इस अर्थ में इस्तेमाल नहीं हुआ है।

देश के इतिहास के सबसे अच्छे स्वर्ण युग का भी पन्ना पलटकर देखें, उसमें आपको भगवान रामचन्द्र भी यह कहते हुए कभी नहीं मिलेंगे कि वे अयोध्या में विकास करने के लिए राजा बनना चाहते थे।

गांधीजी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन में 50 हजार पन्ने लिखे और बोले हैं और वे बाद में उनके जाने के बाद सरकार ने 'कलेक्टेड वर्ड्‍स ऑफ महात्मा गांधी' अंग्रेजी में और 'संपूर्ण गांधी वांड्‍मय' हिन्दी 500-500 पृष्ठों के 100 वाल्यूम छापे हैं।

उसमें कहीं भी एक जगह गांधीजी यह कहते नहीं मिलते कि मैं भारत को इसलिए आजाद करना चाहता हूं कि इसका विकास कर सकूं। यह एक्सस्ट्रीम दो उदाहरण दिए गांधीजी और रामराज्य, इसमें विकास कहीं भी नहीं मिलता है। आज के सम्मानीय नेता जब विकास की बात करते हैं तो उनकी मंशा समझा जाना चाहिए।

विकास की परिभाषा है कि लोगों को सुख मिले और उनके दु:ख दूर हो। चलने के लिए अच्छी सड़कें मिले, पढ़ने के लिए अच्‍छे और साफ-सुथरे स्कूल हों, किसान अच्छी खेती कर सकें। अभी जो सबसे बड़ी त्रासदी हुई हिमालय की, उसे विकास के तराजू पर तौलें तो हमारे पहाड़ में सारी आबादी 6 से 7 हजार फुट पर बसी हुई है।

समाज के विवेक ने कहा कि इससे ऊपर बसाहट की जरूरत नहीं। हमारे मंदिर 10 हजार फुट की ऊंचाई पर है। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर भी फोरलेन और हाईवे बनाया जा सकता है। मानव भूमि का विकास कर सकते हैं, लेकिन देवभूमि का नहीं। हमारे नेताओं में विकास का करने का घमंड है।



देखें वीडियो -
नव को पोस्टकार्ड....

* प्रकृति भेज रही है मानव को पोस्टकार्ड... बेटा तुम भूल गए...

अनुपम मिश्र- उत्तराखंड त्रासदी के बाद हिमालय का यह दौर ऐसा है कि प्रकृति एक छोटा सा पोस्टकार्ड लिखकर भेज रही है कि 'बेटा तुम भूल गए कि हम कौन और तुम कौन।' हिमालय का इतिहास ढाई करोड़ साल से कम नहीं है। क्या हम हिमालय को कुछ सीखा सकते हैं। क्या हम उसे रौंदकर निकल सकते हैं।

हिमालय हमें बताना चाहता है कि पिछले 20-25 सालों में मनुष्य ने कुछ गलतियां की हैं, जिन्हें हिमालय ने उदारतापूर्वक क्षमा किया। उसने गलतियां बताने के लिए यह सब किया।

केदारनाथ मंदिर ठीक जगह बना था, इसमें कंस्ट्रक्शन की कसर नहीं थी, इसलिए बचा। हमारे शरीर में जिस तरह से आंख लगाई गई है, उसी तरह हमारे चारों धाम के मंदिर बने हैं। इस त्रासदी में शंकराचार्यजी द्वारा बनाया गया केदारनाथ मंदिर तो बच गया, लेकिन मनुष्य द्वारा बनाई गई शंकराचार्यजी की समाधि बह गई। इसे पता चलता है कि हमने इस घंमड के साथ मंदिर के सामने गुरु की समाधि का निर्माण किया। विवेक से निर्माण का काम नहीं किया।

अगले पेज पर पढ़ें...लकड़ी की राख बेहतर है परमाणु ऊर्जा की राख स े


* लकड़ी की राख बेहतर है परमाणु ऊर्जा की राख स े

प्रश्न है कि क्या उत्तराखंड त्रासदी के लिए पहाड़ों पर बारूद लगाकर बनाए गए छोटे-छोटे बांध जिम्मेदार है?

अनुपम मिश्र का मानना है कि -आज हमारा एक क्षण भी बिना बिजली के नहीं चलता है। बिजली ने हमें मोह में डाल दिया है, हम बिना बिजली के नहीं रह सकते हैं। हमें यह मोह रहता है कि बिजली हमेशा बनी रहे, जबकि शहरों में आज भी आठ घंटे का ब्लैकआउट होता है।

हमें यह समझना होगा कि बिजली जिन चीजों से निर्मित होती है, उनकी एक सीमा है, जैसे कोयला का सीमित भंडार।

पानी से बिजली हर जगह नहीं बनाई जा सकती है। परमाणु से बिजली बनाने में बचे कचरे को क्या किया जाएगा। लकड़ी जलाने के बाद उसकी राख से बर्तन मांज सकते हैं, लेकिन परमाणु ऊर्जा की राख का कुछ नहीं कर सकते हैं।

अगले पेज पर पढ़ें... क्यों परमाणु ऊर्जा को लेकर ठोकर खाना चाहते हैं ह म


* परमाणु ऊर्जा को लेकर ठोकर खाना चाहते हैं ह म

समझ में नहीं आता कि परमाणु ऊर्जा को लेकर भारत में इतना आग्रह क्यों है? संसद में प्रस्ताव पारित नहीं होने पर प्रधानमंत्री इस्तीफा तक देने पर अड़ गए थे।

अनुपम मिश्र- विनोबाजी ने एक वाक्य कहा था कि 'यह जमाना स्वतंत्र ठोकर खाने का है। हम भी परमाणु ऊर्जा को लेकर ठोकर खाना चाहते हैं। हम जापान, चेरनोबिल में हुए परमाणु हादसे से सबक नहीं लेना चाहते हैं। यह पीढ़ियों को अंगूठों को तोड़ने वाली ठोकर होती है। 5-10 दुनिया के लोगों से पूछना चाहिए कि अमेरिका की कंपनी हमें क्यों यह रिएक्टर देना चाहती है। ऐसे कदमों से देश का अंगूठा टूटेगा।

अगले पेज पर पढ़ें- विकास के परचम तले खेती हुई गायब...


* विकास के परचम तले खेती हुई गायब..

अनुपम मिश्र- हर युग का एक झंडा होता है, इस युग में विकास झंडा है, जिसमें खेती शब्द नहीं आता है। विकास का मतलब होता है बड़ी-बड़ी बिल्डिंग। प्राकृतिक संसाधनों को रुपए में कैसे बदलें, कोयला बिक जाए, लौह अयस्क बाहर बिक जाए। रुपए गिरने का कारण खनन विरोधी आंदोलनों को महत्व दिया। खनन को रोक दिया गया।

रुपया अगर ऊपर चढ़ता हो तो आदमियों का भी खनन करके बेच दिया जाना चाहिए। सारी पार्टियों का एजेंडा एक है- देश का विकास तुरंत करना। प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से विकास करना चाहते हैं। हमें अनाज नहीं चाहिए। हम प्लास्टिक और कम्प्यूटर खाकर भी पेट भर लेंगे। हम कृषि को महत्व नहीं देना चाहते हैं। (समाप्त)

वेबदुनिया पर पढ़ें

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सर्दियों में रूखी त्वचा को कहें गुडबाय, घर पर इस तरह करें प्राकृतिक स्किनकेयर रूटीन को फॉलो

Amla Navami Recipes: आंवला नवमी की 3 स्पेशल रेसिपी, अभी नोट करें

Headache : बिना साइड इफेक्ट के सिर दर्द दूर करने के लिए तुरंत अपनाएं ये सरल घरेलू उपाय

बिना दवाइयों के रखें सेहत का ख्याल, अपनाएं ये 10 सरल घरेलू नुस्खे

झड़ते बालों की समस्या को मिनटों में करें दूर, इस एक चीज से करें झड़ते बालों का इलाज

सभी देखें

नवीनतम

कोरोना में कारोबार बर्बाद हुआ तो केला बना सहारा

केला बदलेगा किसानों की किस्मत

भारतीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही असमंजस में हैं!

Style Secrets : स्मार्ट फॉर्मल लुक को पूरा करने के लिए सॉक्स पहनने का ये सही तरीका जान लें, नहीं होंगे सबके सामने शर्मिंदा

लाल चींटी काटे तो ये करें, मिलेगी तुरंत राहत

अगला लेख
More