वह अभिनव अभिमन्यु
गया जब व्यूह भेदने,
साहसभरा, निर्भीक, मनस्वी,
युद्ध विशारद।
गिरा दिया लघु मिग विमान से
बड़े यान को,
यान और दुश्मन दोनों ही,
नभ के युद्धक्षेत्र से हुए तत्काल नदारद।
तभी पीठ पीछे से हुआ वार दुश्मन का,
वह आहत हो गिरा भूमि पर वहीं यकायक।
दुश्मन की थी भूमि,
युद्धबंदी बनना था,
तब भी वह सिंह सा निडर था
अंतिम क्षण तक।
आततायी शत्रु के घर में बंदी होना,
निश्चय हर कष्टोपमान से गुजरना ही था।
पर भारत के गौरव की रक्षा के हित में,
जो कुछ किया वीर ने
उसको करना ही था।
सलाम वीरता को,
उस बलिदानी मानस को।
सलाम संकल्पों को
जोश से भरी नस-नस को।
सलाम भारत के सैन्य शिक्षण
की प्रखर तन-कस को।
जो कुंदन में बदल देती है
स्वर्णिम-साहस को।
(सलाम, मोदी-सुषमा की
कूटनीति के वैश्विक यश को।
लानत राफ़ेल पर विलापियों