Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

आज तीस साल बाद

हमें फॉलो करें money
webdunia

गिरीन्द्र प्रताप सिंह

उस स्कैम के अपराधों की सजा,
कितनी बार मिलेगी,
आपराधिक सजा थी तो मिल गई,
लेकिन सिविल देनदारी का क्या, 
देनदारी कुछ निकल पाई क्या,
उन बैंकों को कुछ देना क्या,
धंधे का उसूल होता है ये,
कि देनदारी लेनदारी संतुलन में रहे,
हमारी देनदारी नहीं निकली न,
तीस सालों में।
 
शेयर की दलाली का धंधा तो गया, 
संस्थाओं ने पैसे जब्त किए,
संस्थाओं ने जायदाद जब्त की,
वक्त ने बच्चे का करियर जब्त किया,
देखते देखते घर के जेवर भी चले गए,
इन तीस सालों में।
 
तब अखबारों की सबने सुनी,
और हम लोगों की किसी ने एक न सुनी,
अखबारों को और नई खबरें मिली,
लेकिन हमारी फरियाद जैसी थी,
वैसी ही रही वहीं रही,
हम वहीं हैं फरियाद लेकर खड़े,
कभी कोर्ट में जज साहब के पास,
कभी वकील साहब के पास,
कभी आयकर के साहब के पास,
कभी लिक्विडेटर साहब के पास,
कभी कस्टोडियन साहब के पास,
बहुत साहब आए और गए,
उन सबने आवाज तो सुनी,
लेकिन हमारी फरियाद,
वहीं की वहीं रह गई।
 
तीस साल पहले,
हम भारत को अमीर बनाते थे,
हम लोगों की पूंजी को बढ़ाते थे,
हम विदेशी बैंकों से संबंध बढ़ाते थे, 
हम विदेशी संस्थाओं से संबंध बनवाते थे,
हम एनआरआई से संबंध बनाते थे,
 
लेकिन,
आज तीस साल बाद,
हमारा टैलेंट हमसे न्याय मांगता है,
हमारी जॉबिंग हमसे न्याय मांगती है,
वो जायदाद तो लौट आएगी, 
वो पैसा भी लौट आएगा,
लेकिन क्या वो वक्त लौटेगा,
जिन लोगों का विश्वास टूटा,
क्या विश्वास लौटेगा,
क्या वो इज्जत लौटेगी,
क्या वो बैंक लौटेगी,
जो डूब गई,
 
आज तीस साल बाद, 
हमारा धंधा आपसे न्याय मांगता है, 
शब्दकोश में,
सफल,
विफल,
सुफल तो हैं,
लेकिन सहफल नहीं हैं, 
जिसकी जरूरत है, 
और अच्छा है कि,
दुफल नहीं है, जिसकी न जरूरत है, 
न आवश्यकता है,
और न ही जिसका कोई भविष्य है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

सूर्य के उगने से पहले उठेंगे तो मिलेंगे सेहत के 5 महालाभ