सरस्वती वंदना- स्वप्न करो साकार

सुशील कुमार शर्मा
मातु शारदा आप हैं, विद्या बुद्धि विवेक, 
मां चरणों की धूलि से, मिलती सिद्धि अनेक।
 
झंकृत वीणा आपकी, बरसे विद्या ज्ञान,
सत्कर्मों की रीति से, हम सबका सम्मान।
 
जीवन का उद्देश्य तुम, मन की शक्ति अपार,
विमल आचरण दो हमें, मन को दो आधार।
 
घोर तिमिर अंतर बसा, ज्ञान किरण की आस,
ज्ञान दीप ज्योतिर करो, अंतर करो सुवास।
 
नित्य सृजन होवे नवल, शब्द भाव गंभीर, 
मन की अभिव्यक्ति लिखूं, सबके मन की पीर। 
 
कलम सृजन सार्थक सदा, शब्द सृजित संदेश, 
मां दो ऐसी लेखनी, गुंजित हो परिवेश।
 
ज्ञान सुधा की आस है, दे दो मां वरदान,
भाव विमल निर्मल सकल, परिमल स्वर उत्थान।
 
उर में मां आकर बसो, स्वप्न करो साकार, 
मां तेरे अनुसार हों, छंदों के आकार। 

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