जब भी आंखें खोलतीं हूं, नन्हे-नन्हे सपने बुनती हूं,
उन्हें साकार करने के लिए, छोटे छोटे कदम बढ़ाती हूं,
कभी आकाश बनकर ,तो कभी धरती बनकर समाज को सींचती हूं
हूं शक्ति का एक रूप फिर भी, अबला कहलाती हूं
ज़िन्दगी के हर रंग में हूं मैं मौजूद,
फिर भी कहने को हूं मज़बूर ...... हम भी तो हैं....
चित्र सौजन्य : अर्चना शर्मा