होली पर कविता : रंगों की कोई जात नहीं होती...

संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'
बात नहीं होती
रंगों की कोई जात नहीं होती 
भाईचारे के देश में दुश्मनी की बात नहीं होती 
ये खेल है प्रेम की होली का 
मिलकर रहते इसलिए टकराव की बात नहीं होती।
 
रंगे चेहरों से दर्पण की बात नहीं होती
वृक्ष भी रंगे टेसू से मगर पहाड़ों से बात नहीं होती 
ये खेल है प्रेम की होली का 
बिना रंगे तो प्रकृति भी खास नहीं होती।
 
पानी न गिरे तो नदियां खास नहीं होती
सूरज बिना इन्द्रधनुष की औकात नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का 
फूल न खिले तो खुशबुओं में बात नहीं होती।
 
नींद बिना सपनों की बात नहीं होती
दिल मिले बिना प्रेम में उजास नहीं होती
ये खेल है प्रेम की होली का 
साथी हो तो सजने की बात नहीं होती।
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