बालिका दिवस पर कविता : बेटी की उड़ान मेरा अभिमान

प्रीति दुबे
मान मिला सम्मान मिला
धन्य हुआ नारी जीवन जब......
आँचल रूपी सुखद सरोवर
पुत्री रत्न सम कमल खिला
मन की आशाओं को उड़ने
विकसित विहसित आकाश मिला
प्रीति से प्रीति जन्मी दानी होने का सौभाग्य मिला... 
 
पंख हुए पुलकित हर्षाए अभिलाषाओं ने ली अँगड़ाई
आँगन की फुलवारी में मेरे एक सोन चिरैया आई
गहरी उथली सोच सीख संग जीवन नीति उसे सिखाई
पाँखों में भर साहस शक्ति आसमान की राह दिखाई
 
सपनों को साकार करे संग रक्षण स्वाभिमान सिखाया
स्त्री हो स्त्रीत्व प्रेम का भावों में उसके अलख़ जगाया
हो अगर अन्याय कभी तो अन्याय द्रोह का पाठ पढ़ाया
तोड़कर सारे बंधन  और ज़ंजीरों को तोड़कर 
नज़र उठे ग़र ग़लत तो उसको शमशीरों से चीरकर
वहशी और दरिंदों को जब धूल चटा तू जाएगी
मेरी लाडो तू नारी हो नारी की ढाल बन जाएगी
 
हर बेटी माँ ,माँ है हर बेटी इक दूजे को संबल देतीं
शक्ति और समर्पण की हर रीति अपनाएगी
बेटी हो तू इस दुनिया में बेटी का मान बढ़ाएगी
 
बिटिया तेरी हर उड़ान से मुझको वो सम्मान मिले
मुझसे तुझको पहचान मिली अब तू मेरी पहचान बने
तुझपे मेरा आँचल फैला अब मुझपे तेरा छत्र तने
 
बेटी अब माँ से नहीं माँ बेटी से पहचानी जाएगी
संस्कारों की थाम डोर जब क्षितिज छोर तक जाएगी 
सचमुच  मेरी बेटी तू मेरा अभिमान कहलाएगी।

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