Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

पृथ्वी दिवस पर कविता : धरती

हमें फॉलो करें World earth day
webdunia

एमके सांघी

आज फिर एक और ज़मीन के 
टुकड़े की किस्मत फूट गई
झुग्गी-झोपड़ियों को उखाड़ कर
वहां महल की नींव खुद गई।
 
पहले बोझ था कम
चारों ओर खुली हवा थी
गरीबों के सिर छांव थी
मिल रही उनकी दुआ थी।
 
सूरज की रोशनी भी तब 
जमीन के हर हिस्से को थी नसीब
झोपड़ियों के आस-पास विचरते
चीटों का संपर्क लगता था अजीज।
 
पक्के मजबूत कांक्रीट से अब मगर
पूरी सतह दी जाएगी ढक
नीचे दबी ज़मीन अब जीवन को
देखकर नहीं पाएगी हंस।
 
बरसते जल की भी अब उसे
सुनाई देगी बस गूंज
चमकीली टाइल्स से छनकर
धरती तक न पहुंचेगी उसकी एक बूंद।
 
महल की पथरीली सतह से
हवाएं भी टकरा कर लौट जाएंगी
ठंडी हवा के एक झोंके के लिए भी
ज़मीन तरस-तरस जाएगी। 
 
धरती दिवस पर धरती का है कहना
रहने के लिए मुझे बस झोपड़ी जितना ढंकना
घर हर इंसान की जरूरत है मगर मुझ पर
आवश्‍यकता से बड़ा महल मत खड़ा करना। 


(वेबदुनिया पर दिए किसी भी कंटेट के प्रकाशन के लिए लेखक/वेबदुनिया की अनुमति/स्वीकृति आवश्यक है, इसके बिना रचनाओं/लेखों का उपयोग वर्जित है...)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

विश्व पृथ्वी दिवस : हर दिन पृथ्वी दिवस है क्योंकि....