कविता: भार तो केवल श्वासों का है...

राकेशधर द्विवेदी
स्वप्न जो देखा था रात्रि में हमने 
सुबह अश्रु बन बह किनारे हो गए हैं
चांद और मंगल पर विचरने वाले हम 
आज कितने बेसहारे हो गए हैं
विकास की तालश में हमने हमेशा 
जंगलों, पहाड़ों, पठारों को गिराया 
विकसित से अति विकसित बनने के सफर में
सृष्टि के किताब के अनमोल पृष्ठों को जलाया
बरगद, नीम, पीपल को काटकर 
प्राणवायु दाता का उपहास उड़ाया
कंक्रीट के जंगलों में कैक्टस और  
बोगनवेलिया उगाया
मंगल और चंद्रमा पर बसने के प्रयास में 
धरती को मिट्टी मानुष का उपहास उड़ाया
स्वार्थ, लालच और अभिमान के मार से गर्वित हो
तमाम पशु-पक्षियों का नामो निशान मिटाया
लेकिन आज तुम हे मानव 
ऑक्सीजन सिलेंडर लगाए 
हांफ रहे हो भाग रहे हो 
और उद्घाटित कर रहे हो 
इस सत्य को कि 
भार तो केवल श्वांसो का है 
बाकी सब मिथ्या है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

सर्दियों में रूखी त्वचा को कहें गुडबाय, घर पर इस तरह करें प्राकृतिक स्किनकेयर रूटीन को फॉलो

Amla Navami Recipes: आंवला नवमी की 3 स्पेशल रेसिपी, अभी नोट करें

Headache : बिना साइड इफेक्ट के सिर दर्द दूर करने के लिए तुरंत अपनाएं ये सरल घरेलू उपाय

बिना दवाइयों के रखें सेहत का ख्याल, अपनाएं ये 10 सरल घरेलू नुस्खे

झड़ते बालों की समस्या को मिनटों में करें दूर, इस एक चीज से करें झड़ते बालों का इलाज

सभी देखें

नवीनतम

कोरोना में कारोबार बर्बाद हुआ तो केला बना सहारा

केला बदलेगा किसानों की किस्मत

भारतीय लोकतंत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही असमंजस में हैं!

Style Secrets : स्मार्ट फॉर्मल लुक को पूरा करने के लिए सॉक्स पहनने का ये सही तरीका जान लें, नहीं होंगे सबके सामने शर्मिंदा

लाल चींटी काटे तो ये करें, मिलेगी तुरंत राहत

अगला लेख
More