हिन्दी कविता : खिले टेसू

संजय वर्मा 'दृष्ट‍ि'
खिले टेसू 
ऐसे लगते मानों 
खेल रहे हो पहाड़ों से होली। 
 
सुबह का सूरज 
गोरी के गाल 
जैसे बता रहे हों 
खेली है हमने भी होली 
संग टेसू के। 
प्रकृति के रंगों की छटा
जो मौसम से अपने आप 
आ जाती है धरती पर 
फीके हो जाते हैं हमारे 
निर्मित कृत्रिम रंग। 
 
डर लगने लगता है 
कोई काट न ले वृक्षों को
ढंक न ले प्रदूषण सूरज को। 
 
उपाय ऐसा सोचें 
प्रकृति के संग हम 
खेल सकें होली। 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

विवाह के बाद गृह प्रवेश के दौरान नई दुल्हन पैर से क्यों गिराती है चावल से भरा कलश? जानिए क्या है इस रस्म के पीछे का कारण

सावधान! धीरे धीरे आपको मार रहे हैं ये 6 फूड्स, तुरंत जानें कैसे बचें

Easy Feetcare at Home : एल्युमिनियम फॉयल को पैरों पर लपेटने का ये नुस्खा आपको चौंका देगा

जानिए नवजोत सिद्धू के पत्नी के कैंसर फ्री होने वाले दावे पर क्या बोले डॉक्टर्स और एक्सपर्ट

Winter Fashion : सर्दियों में परफेक्ट लुक के लिए इस तरह करें ओवरसाइज्ड कपड़ों को स्टाइल

सभी देखें

नवीनतम

बॉडी पॉलिशिंग का है मन और सैलून जाने का नहीं है टाइम तो कम खर्च में घर पर ही पाएं पार्लर जैसे रिजल्ट

मजेदार बाल गीत : गुड़िया रानी क्या खाएगी

क्या बच्‍चों का माथा गर्म रहना है सामान्य बात या ये है चिंता का विषय?

आपकी ये फेवरेट चीज, बच्चों के लिए है जहर से भी ख़तरनाक , तुरंत संभल जाइए वरना बच्चों को हो सकते हैं ये नुकसान ...

कितना सच है महिलाओं को लेकर आचार्य चाणक्य का ये दावा, चाणक्य नीति में मिलता है विशेष उल्लेख

अगला लेख
More