पिता का दाहसंस्कार कर
घर के सामने खड़े होकर
अपने पिता को पुकारने की प्रथा
जो दाहसंस्कार में सम्मिलित होकर
बोल रहे थे कि राम नाम सत्य है
उन्हें हाथ जोड़कर विदा करने की विनती
भर जाती आंखों में पानी
वो पानी बढ जाता
गला रुंध जाता, तब
जब तस्वीर पर चढ़ी हो माला
और सामने जल रहा हो दीपक
बचपन की स्मृतियां
संग पिता आ जाती है मस्तिष्क पटल पर
जो काम पिता कर लेते थे
वो लोगों से पूछकर करना पड़ता
हौंसला अफजाई
और परीक्षा में पास होने पर
पीठ थपथपाई भी गुम सी गई
अब में पास हुआ किंतु
शाबासी की पीठ सूनी सी है
और त्यौहार भी मुंह मोड़ चुके
और रौशनी रास्ता भूल गई
पकवान और नए कपड़े कैद हो गए पेटियों में
इंतजार है श्राद पक्ष का
पिता आएंगे पूर्वजों के संग
धरती पर अपने लोगों से मिलने
जब श्राद्ध में पूजन तर्पण
और उन्हें याद करेंगे जब हम
क्योंकि पिता जो थे वृक्ष की तरह
पक्षियों का तो वे आसरा
हमारे भी सहारा थे
मगर आज हम है बेसहारा