शिव संवाद
कर्म की व्याख्या क्या करूं
जो करवाते हो
वह कर्म तुम्हीं को समर्पित
मेरे कर्म यदि मेरे नहीं
तो फल भी नहीं मेरे
मेरे धर्म तुम्हारे
तुम्हीं हो धर्मप्रवर्तक मेरे...
मेरे महत्तर स्वार्थ के लिए
जो तुम्हारे आदेश शिरोधार्य
मैं तो मर्त्य की नारी हूं
मोह मद लोभ काम को जीत भी लूं
तो जीत के बोध को
कैसे जीतूं ,वह शक्ति भी
तो तुम दोगे और मैं
नारी से देवी बनने की चाह छोड़
केवल अपना कर्म कर जाऊं
मेरे कर्म तुम्हारे
तुम्हीं हो कर्मप्रवर्तक मेरे....
मेरे शैशव की स्मृति तुम
तरुणाई के अनुगान् भी तुम
प्रेम जो अनुभूत सत्य था
तुम्हारे ही साथ से
अज्ञान सलिल की बूंदें
बन झर जाऊंगी चरणों में तुम्हारे
मेरे अपूर्ण प्रयास की पूर्णता
को सार्थकता देते परम सत्य तुम
मैं अल्पज्ञ नेह चंद्रिका
तुम सहस्त्र सूर्य प्रखर मेरे....