हिन्दी कविता : दो आंसू प्रजातंत्र के लिए...

डॉ. रामकृष्ण सिंगी
महाराष्ट्र में तीन होटलों में रुकी थी तीन बारातें। 
बारातियों से बाहर वालों के मिलने के लाले थे || 
क्योंकि अंदर की सरगर्मी थी गोपनीय, पर्दे में,
और बाहर दरवाजों पर लगे हुए ताले थे || 1 || 
 
एक बड़ी बारात बाहर से अंदर झांक रही थी। 
अपनी घुसपैठ की संभावनाएं रुक-रुक आंक रही थी || 
बाहर की हवा न जाती थी अंदर, न अंदर की आती बाहर।
जो स्थिति बनी वह किसी के लिए भी ना हितकर थी, ना सुखकर || 2 || 
 
अंतत: एक बड़े ड्रामे का पटाक्षेप हुआ। 
हर दल द्वारा दूसरे पर 'प्रजातंत्र की हत्या' का आक्षेप हुआ।।
सत्ता के लिए जोड़-तोड़ में 'प्रजातंत्र की हत्या' एक बड़ा नारा है। 
(सच पूछो तो) प्रजातंत्र अपनी दुर्दशा पर कहीं आंसू बहा रहा बेचारा है || 3 || 
 
मतदाता के निर्मल प्रजातंत्र को किसने, कहां संवारा है।  
अपने निहित स्वार्थों में सबने उसका नूर उतारा है। 
जो जीता है उसके लिए ही बस प्रजातंत्र जीता है। 
जो हारा है उसके लिए तो प्रजातंत्र हारा है। || 4 ||
 
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

इन्फ्लेमेशन बढ़ने पर शरीर में नजर आते हैं ये लक्षण, नजरअंदाज करना पड़ सकता है भारी

आपको डायबिटीज नहीं है लेकिन बढ़ सकता है ब्लड शुगर लेवल?, जानिए कारण, लक्षण और बचाव

छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती पर जानिए उनके जीवन की रोचक बातें

भोलेनाथ के हैं भक्त तो अपने बेटे का नामकरण करें महादेव के इन सुन्दर नामों पर, सदा मिलेगा भोलेनाथ का आशीर्वाद

क्यों फ्लाइट से ऑफिस जाती है ये महिला, रोज 600 किमी सफर तय कर बनीं वर्क और लाइफ बैलेंस की अनोखी मिसाल

सभी देखें

नवीनतम

एग्जाम की तैयारी के लिए ये हैं मेजिकल टिप्स, नहीं भूलेंगे बार-बार और बना रहेगा आत्मविश्वास

छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन की 5 घटनाएं जानिए

हिन्दी नवगीत : मन वसंत

पीरियड्स की डेट हो जाती है डिले तो इस देसी ड्रिंक से मिलेगी राहत

वर्कआउट के बाद भी बढ़ रहा है वजन? जानिए क्या है वजह

अगला लेख
More