कविता : हवाएं करती हैं प्रतीक्षा

तरसेम कौर
हवाएं करती हैं प्रतीक्षा
किसी सुगंध के आने की 
ताकि वो भी सुगंधित हो सकें
चांद करता है प्रतीक्षा
अमावस के चले जाने का
ताकि वो भी चमक सके
और हम में से हरेक
करता है प्रतीक्षा
कुछ ऐसा सच हो जाने का
जो कल्पनाओं में है
जो सपनों में है
वो सपने जो हम देखते हैं
खुली आंखों से
बंद आंखों के सपने तो बस
सपने ही रह जाते हैं जिनके
पंख होते हैं
बंद आंखों के सपने पंछी होते हैं..!!
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