मेरे शब्द वहाँ अर्पित ना हो,
जहाँ सुंदरता का बखान हो,
नश्वर रूप सज्जा की वाणी,
ऐसी क्षयी बोली, विराम हो।
मेरे शब्द वहाँ अर्पित ना हो,
जहाँ आडम्बरी प्रेमजाल हो,
श्रृंगार क्षणिकसुख की वाणी,
ऐसी मिथ्या बोली, विराम हो।
मेरे शब्द वहाँ अर्पित ना हो,
जहाँ धनबाहुल्यता वर्णित हो,
आनी-जानी माया की वाणी,
ऐसी अनृत बोली, विराम हो।
मेरे शब्द अर्पित वहाँ ही हो,
जहाँ सत्य और विश्वास हो,
जिह्वा प्रभु उपदेश की वाणी,
सर्वसुख करनी, अविराम हो।
मेरे शब्दों से अर्पित राष्ट्रप्रेम हो,
देशभक्तों, वीरों का गुणगान हो,
सदैव मातृभूमि सेवा की वाणी,
प्रेरणा दें, रूपांतर के प्रमाण हो।
कवि श्री माखनलाल चतुर्वेदी के चरणों में समर्पित
©® सपना सी.पी.साहू "स्वप्निल"