Shree Sundarkand

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

ग़ज़ल- आज़ाद है ’शाहीन’, कैद में बाग है

Advertiesment
हमें फॉलो करें Shaheen Bagh

पं. हेमन्त रिछारिया

सियासत की जाने कैसी ये आग है,
आज़ाद है ’शाहीन’, कैद में बाग है।
 
उन्हें सिखा रहे हो उसूल मुहब्बत के
नफ़रत से जिनके चूल्हों में आग है
 
ए गुमराह मुंसिफ़ पाकीज़ा ना तेरा दामन
मुफ़लिसों के लहू का उस पर भी दाग है
 
उनसे शिकायत कैसी वो गैर जो ठहरे
मुल्क जला रहे जो घर के चिराग हैं
 
गाफ़िल नहीं अजी हम खूब समझते हैं
तख्त-ओ-ताज की सारी ये दौड़ भाग है।

(शाहीन-बाज/शिकारी पक्षी, उसूल-सिद्धान्त, मुंसिफ़-न्यायाधीश, मुफ़लिस-गरीब/बेसहारा, गाफ़िल-विमुख/लापरवाह)
पं. हेमन्त रिछारिया
सम्पर्क: astropoint_hbd@yahoo.com 
 
 

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

जानिए इस सप्ताह के शुभ मुहूर्त (24 फरवरी से 1 मार्च 2020 तक)