भारत का आध्यात्मिक जीवन संवरा
वेद, उपनिषद, पुराणों से।
हिमालयी तपस्या-स्थलों से,
पवित्रम तीरथ स्थानों से।।
वाल्मीकि, शंकराचार्य से,
गौतम बुद्ध, महावीर से।
नानक, रामकृष्ण, नरेन्द्र से,
तुलसी, सूर, कबीर से ।।
बौद्ध, जैन, सनातन जीवन-धारा,
बहती रही यहाँ निःशंक।
हाय ! धूर्त बाबाओं के कारनामों से
लगा अब घनघोर कलंक ।। 1 ।।
प्रवचनकार हुए व्यापारी,
कथा-आयोजन बने तमाशे।
मंदिर श्रद्धाओं के विदोहक,
धन के अर्जक सब अच्छे खासे ।।
धर्मग्रंथ हो गये लुप्त सब,
डेरा / मठाधीशों ने नये शगूफे तराशे।
आध्यात्मिक बहरूपियों ने ईजाद कर लिये।
कितने नये आध्यात्मिक झाँसे।।2।।
बाबाओं की इस दुनिया में अब
सब ' गुरु ही गुरु ' है,
'गोविन्द ' का तो कहीं जिकर नहीं है।
छुप गये धर्म- संस्कृति अंधियारी गली में,
आध्यत्मिकता कहीं सिसक रही है ।।
बाबाओं / घोटालेबाजों / धंधेबाजों की तिकड़ियाँ ,
डेरों / मठों में छाई हर कहीं है।
मत आना प्रभु ! अवतार धर भूल कर भी,
आपके लिये अब कोई जगह नहीं है ।।3।।