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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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अटल विहारी की ये 3 कलम तोड़ कविता आपको प्रेरणा से भर देंगी

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atal bihari vajpayee poems
भारत के दसवें प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को आज भी भारत के लिए एक प्रेरणा का स्त्रोत हैं। वाजपेयी जी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को हुआ था। साथ ही हर साल 16 अगस्त को उनकी पुण्यतिथि मनाई जाती है। वाजपेयी जी को सन् 2015 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वाजपेयी जी सिर्फ एक राजनेता ही नहीं बल्कि वह एक कवि, पत्रकार एवं कुशल वक्ता भी थे। आज उनकी इस पुण्यतिथि पर उनकी कुछ कविता के बारे में जानते हैं... 
 
1. कदम मिला कर चलना होगा 
बढ़ाएं आती हैं आएं
घिरें प्रलय की घोर घटाएं,
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएं,
निज हाथों में हंसते-हंसते,
आग लगाकर जलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में,
अगर असंख्यक बलिदानों में,
उद्यानों में, वीरानों में,
अपमानों में, सम्मानों में,
उन्नत मस्तक, उभरा सीना,
पीड़ाओं में पलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
उजियारे में, अंधकार में,
कल कहार में, बीच धार में,
घोर घृणा में, पूत प्यार में,
क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में,
जीवन के शत-शत आकर्षक,
अरमानों को ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ,
प्रगति चिरंतन कैसा इति अब,
सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ,
असफल, सफल समान मनोरथ,
सब कुछ देकर कुछ न मांगते,
पावस बनकर ढलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा।
 
कुछ कांटो से सज्जित जीवन,
प्रखर प्यार से वंचित यौवन,
नीरवता से मुखरित मधुबन,
परहित अर्पित अपना तन-मन,
जीवन को शत-शत आहुति में,
जलना होगा, गलना होगा।
कदम मिलाकर चलना होगा। 
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2. आओ फिर से दिया जलाएं 
 
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अंधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
 
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल
वर्तमान के मोहजाल में
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
 
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने
नव दधीचि हड्डियां गलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
3. मैं न चुप हूं न गाता हूं
 
न मैं चुप हूं न गाता हूं
सवेरा है मगर पूरब दिशा में
घिर रहे बादल
रूई से धुंधलके में
मील के पत्थर पड़े घायल
ठिठके पांव
ओझल गांव
जड़ता है न गतिमयता
 
स्वयं को दूसरों की दृष्टि से
मैं देख पाता हूं
न मैं चुप हूं न गाता हूं
 
समय की सदर सांसो ने
चिनारों को झुलस डाला,
मगर हिमपात को देती
चुनौती एक दुर्ममाला,
 
बिखरे नीड़,
विहंसे चीड़,
आंसू हैं न मुस्कानें,
हिमानी झील के तट पर
अकेला गुनगुनाता हूं।
न मैं चुप हूं न गाता हूं। 
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