जब जनता पार्टी टूटी थी तो यह रचा था कवि अटल ने...

Webdunia
अटल बिहारी वाजपेयी की कविता : अभी चला दो कदम कारवां साथी छूट गया

हाथों की हल्दी है पीली
पैरों की मेहंदी कुछ गीली
पलक झपकने से पहले ही सपना टूट गया
 
दीप बुझाया रची दिवाली
लेकिन कटी न मावस काली
व्यर्थ हुआ आवाहन स्वर्ण सबेरा रूठ गया।
सपना टूट गया।
 
नियति नटी की लीला न्यारी
सब कुछ स्वाहा की तैयारी
अभी चला दो कदम कारवां साथी छूट गया।
सपना टूट गया।
 
* 1979 में जनता पार्टी के टूटने के बाद की मन:स्थिति में रचित।

ALSO READ: अटल जी की कविता : क्या खोया, क्या पाया जग में

ALSO READ: अटल बिहारी वाजपेयी : रग-रग हिन्दू मेरा परिचय
Show comments
सभी देखें

जरुर पढ़ें

शिशु को ब्रेस्ट फीड कराते समय एक ब्रेस्ट से दूसरे पर कब करना चाहिए शिफ्ट?

प्रेग्नेंसी के दौरान पोहा खाने से सेहत को मिलेंगे ये 5 फायदे, जानिए गर्भवती महिलाओं के लिए कैसे फायदेमंद है पोहा

Health : इन 7 चीजों को अपनी डाइट में शामिल करने से दूर होगी हॉर्मोनल इम्बैलेंस की समस्या

सर्दियों में नहाने से लगता है डर, ये हैं एब्लूटोफोबिया के लक्षण

घी में मिलाकर लगा लें ये 3 चीजें, छूमंतर हो जाएंगी चेहरे की झुर्रियां और फाइन लाइंस

सभी देखें

नवीनतम

सार्थक बाल साहित्य सृजन से सुरभित वामा का मंच

महंगे क्रीम नहीं, इस DIY हैंड मास्क से चमकाएं हाथों की नकल्स और कोहनियां

घर में बेटी का हुआ है जन्म? दीजिए उसे संस्कारी और अर्थपूर्ण नाम

क्लटर फ्री अलमारी चाहिए? अपनाएं बच्चों की अलमारी जमाने के ये 10 मैजिक टिप्स

आज का लाजवाब चटपटा जोक : अर्थ स्पष्ट करो

अगला लेख
More