Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट

हमें फॉलो करें लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट

विशाल डाकोलिया

FILE


कैसे बीतेंगे आने वाले पाँच बरस,
यह तय करेगा आपका एक वोट,
फिर ना कोई सोए भूखा,
....... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

अब ना हो ऐसे चीर हरण,
ना शीश कटें जवानों के,
हर खेत में लहके धानी चुनर,
ना लटके धड़ किसानों के ।
....... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

अब ना कोई लूट सके,
इस धरा के खजानों को,
अब ना कोई बाँट सके,
भजनों को अजानों को।
........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

तन, मन, धन संपन्न बने,
जीते हर इंसान के,
हो दृढ़ चरित्र हर युवा,
हो उद्यम बीज सुजान रे ।
........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

निश्चल, निर्भय, शिक्षण हो,
हर बेटी बेटे का अधिकार,
कोई ना छीने अपने हक़,
कांपे थर-थर भ्रष्टाचार ।
........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

हो अश्वमेध फिर विश्व पटल पर,
भारत के अरमानों का,
मिटे जाल सूद, ऋणों का,
डरने और धमकाने का,
....... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

देख संभलकर चलना रे,
ओ लोकतंत्र की सेना रे,
पग-पग बैठे लूटने वाले,
बनकर तोता मैना रे,
...... कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

ना हो बेकार, तेरी मोहर,
तू दिखला दे ऐसा जौहर,
बन पारखी चुन ऐसा राजा रे,
हो न्याय, खुशियों के नौबत बाजा रे,
........ कि लोकतंत्र के डंके पे, मारो ऐसी चोट ।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi