दिल का हाल सुने दिलवाला: श्री 420 का ये कॉमेडी गीत था या दर्द का तराना | गीत गंगा
यह गीत एक जमाना, उसका मिजाज, उसकी नीयत, उसका ईमान की याद दिला देता है
- यह गीत बताता है मूल्यों का ह्रास, आजादी के तुरंत बाद शुरू हो गया था
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यह गीत राज कपूर के दिमाग तथा मिजाज को समझने की कुंजी देता है
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'श्री चार सौ बीस' में हमें चार्ली चैपलिन का हिन्दुस्तानी संस्करण मिलता है
इतना अनोखा, मधुर और स्तरीय गीत नहीं है यह कि इस पर कलम चलाई जाए। फिर भी एक एंगल बनता है, जिसकी तरफ से इसे बातचीत के लिए उठाया जा सकता है। एंगल यह है कि गीत राज कपूर की फिल्म का है और राज कपूर के दिमाग तथा मिजाज को समझने की कुंजी देता है। यह एक कॉमेडी गीत है। बोल भी कुछ अटपटे हैं। आम आदमी इसे सुनकर बोलों का मजा ले सकता है, पर बौद्धिक वर्ग पूछेगा- 'इसमें ऐसी क्या खास बात है सिवा इसके कि हंसाने के लिए चंद लाइनें ठूंस दी गई हैं? पर, हम नोट करें कि लाखों-करोड़ों रुपए लगाकर फिल्में आम जनता के लिए बनाई जाती हैं, क्योंकि आर्थिक भरपाई या मुनाफा उसी से आता है। बौद्धिक वर्ग अपेक्षया छोटा होता है और अक्सर फिल्म निर्माताओं का टारगेट नहीं होता है! इसलिए इस गीत की व्याख्या और किस्म से होगी।
'श्री चार सौ बीस' बनाने वाले राज का लक्ष्य पैदल चलने वाले, गली-कूचों में रहने वाले, सब्जी का ठेला लगाने वाले, रद्दी बटोरने वाले, दो जून कमाकर एक जून खाने वाले इंसान थे। इन्हीं के दु:ख-दर्द से वे मुताल्लिक होते थे और इन्हीं के लिए फिल्म बनाना उन्हें अच्छा लगता था। उनके जीवन का बीज मंत्र था- 'सड़क', स्ट्रीट और तब राज कपूर बार-बार अटारी से उतरकर सड़क पर आते और सड़क के लिए सड़क पर फिल्म बनाकर अटारी में लौट जाते थे। नेहरू के बाद वे दूसरे विशिष्ट पुरुष थे जिसने देश की सामान्य जनता को तहेदिल से चाहा।
'श्री चार सौ बीस' का यह नगमा- 'दिल का हाल सुने दिलवाला' राज के इसी प्यारे जुनून से आया है। वे यहां बदहवास बदहालों के लफ्ज, तस्वीरें और तजुर्बे उनको लौटा रहे हैं और वे लोग इनमें अपने को पाकर हंस रहे हैं, रो रहे हैं। सवाल है कि ऐसे सीधे-सादे, बेरोजगार, राजनीतिक यतीम का क्या परिचय हो सकता है, जो छोटे से घर में गरीब का बेटा है। रंजो-गम जिसके बचपन के साथी हैं। आंधी में जिसकी जीवन बाती जली है। भूख ने जिसे प्यार से पाला है। सूरत ही जिस अभागे की ऐसी है कि पोलिस वाला चोर समझकर पकड़कर ले जाता है। हर तरफ उसकी तरक्की रुकी पड़ी है। दौलत वाला (पूंजीवाद) टांग अड़ाता है। यहां तक तो ठीक, मगर दौर, अफसरशाही, शोषण, अत्याचार और नई तानाशाही से वह इतना डर चुका है कि व्यर्थ, बेसिरपैर की बातों से भी घबराने लगा है।
'बिन मौसम मल्हार न गाना, आधी रात को मत चिल्लाना' 'श्री चार सौ बीस' बताती है कि मूल्यों का ह्रास, आजादी के तुरंत बाद शुरू हो गया था और वह नेहरू युग का ही पोलिस वाला था जिसके बारे में जोकर राज कपूर, शांति के ढप पर गा रहा था- 'तिनके का लेके सहारा न बहना..., वरना पकड़ लेगा पोलिसवाला।'
बताइए, ये कॉमेडी गीत था या दर्द का तराना? अब पढ़ें गीत, जिसे जहीन शैलेन्द्र ने लिखा था और राज कपूर के लिए मन्ना डे ने गाया था।
दिल का हाल सुने दिलवाला, सीधी-सी बात न मिर्च मसाला
कहके रहेगा कहने वाला..., दिल का हाल सुने दिलवाला
छोटे से घर में गरीब का बेटा, मैं भी हूं मां के नसीब का बेटा
रन्ज-ओ-ग़म बचपन के साथी, आंधियों में जली जीवन बाती
भूख ने है बड़े प्यार से पाला
(कोरस में लड़कियों की सामूहिक चुमकार- च् च् च् च्/ इसी तरह अगले स्थलों पर भी)
दिल का हाल सुने दिलवाला
हाय करूं क्या सूरत ऐसी, गांठ के पूरे चोर के जैसी
चलता-फिरता जानके इक दिन, बिन देखे-पहचान के एक दिन
बांध के ले गया पोलिसवाला... दिल का हाल...
बूढ़े दरोगा ने चश्मे से देखा, ऊपर से देखा, नीचे से देखा
आगे से देखा, पीछे से देखा, बोला ये क्या कर बैठे घोटाला
ये तो है थानेदार का साला... दिल का हाल...
ग़म से कभी आज़ाद नहीं हूं, ख़ुश हूं मगर आबाद नहीं हूं
मंज़िल मेरे पास खड़ी है, पांव में लेकिन बेड़ी पड़ी है
टांग अड़ाता है दौलतवाला... दिल का हाल...
(देख रहे हैं राज, शैलेन्द्र और के. अब्बास भ्रष्टाचार तथा विमानवीकरण की कैसी छिलाई कर रहे हैं।)
सुन लो मगर ये किसी से न कहना, तिनके का लेके सहारा न बहना
बिन मौसम मल्हार न गाना, आधी रात को मत चिल्लाना लाना
(क्या हालत हुई देश की आजादी की? आदमी अपनी छाया से डरने लगा। गाने जैसी चीज में मौसम और राज्य (स्टेट) की परवाह करने लगा। यह ध्यान रखे कि नींद में भी न चिल्ला पड़े। सपने दुष्ट होते हैं। मन्ना डे मास्टर स्ट्रोक पंक्ति को गाते हैं...)
वरना पकड़ लेगा पोलिसवाला... दिल का हाल...
यह था राज कपूर का सिनेमा। हास्य में वेदना और आंसू में मसखरेपन को गूंथने का अंदाज। 'श्री चार सौ बीस' में हमें चार्ली चैपलिन का हिन्दुस्तानी संस्करण मिलता है और 'मेरा नाम जोकर' में जाकर वह पूर्ण हो जाता है। राज ने उद्देश्यपूर्ण सिनेमा रचा था। उसके यहां 'एब्सर्ड' और भी अर्थपूर्ण है, क्योंकि पगली दुनिया को सिर के बल खड़े होकर ही समझा-समझाया जा सकता है, जैसा स्वयं राज कपूर फिल्म में दरोगा के सामने करते हैं। यह गीत मुझे एक जमाना, उसका मिजाज, उसकी नीयत, उसका ईमान याद दिला देता है। वह भी एक मेलडी है, जो विचार के मार्फत आती है और कान से ज्यादा दिमाग से सुनी जाती है। तेकि मैं झूठ बोल्या?
(अजातशत्रु द्वारा लिखित पुस्तक 'गीत गंगा खण्ड 1' से साभार, प्रकाशक: लाभचन्द प्रकाशन)