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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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संगत
कुछ कम रोशन है रोशनी, कुछ कम गीली हैं बारिशें
माँ पर नहीं लिख सकता कविता
बस, एक हाँ की गुजारिश, फिर खुशियों की बारिश
तुम चले जाओगे, थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे
प्रेम खोल देता है आत्मा की खिड़की
अब भी अच्छे लगते हैं तितली और फूल
ये कैसी है, सहर कबीरा?
हवा में पिरोता रोशनी के फूल
यहाँ पानी चाँदनी की तरह चमकता है
लहराते अँधेरे में चहकती हँसी
नदी के किनारे भी नदी है
हम पर पत्तियाँ गिर रही हैं
आबशारों के हसीं कद याद आ जाएँ
सारी महत्वपूर्ण चीजें मुफ्त होती हैं
सुन तो जरा मदहोश हवा तुझसे कहने लगी...
बहारों की छत हो, दुआओं के खत हो
हाँ, वसंत तुम्हारे रंग खिले हैं
कुछ चीजें अब भी अच्छी हैं
गिन-गिन तारे मैंने उँगली जलाई है
सपनों के जैसी उसकी हर शाम है
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