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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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रात हमारी तो चाँद की सहेली है

स्वानंद किरकिरे की संवेदनशील रचना पर संगत

हमें फॉलो करें रात हमारी तो चाँद की सहेली है

रवींद्र व्यास

Ravindra VyasWD
हिंदी फिल्मी गीतों में रात कई तरह से होती है। कई तरह से धड़कती है। कभी खुशनुमा माहौल में, कभी मस्ती में, कभी किसी शोख अदा में अपने जलवे बिखेरती। कभी तन्हाई में, कभी दुःख में, कभी दर्द में जख्मों को सहलाती हुई। इन गीतों में कभी रात का समाँ है तो कभी रात ही मतवाली है। इन गीतों में रात कभी नागिन सी डसती है तो कभी रेशमी जुल्फों की तरह छा जाती है।

कई गीतकारों ने कई भावों और रंगों में इसे रचा है। अपेक्षाकृत युवा गीतकार स्वानंद किरकिरे ने इस रात को कुछ अलग अंदाज में देखा है, महसूसा है और फिर रचा है। फिल्म परिणीता के लिए उनके लिखे गीत के बोल हैं- रात हमारी तो चाँद की सहेली है। पंक्तियाँ अपनी काव्यात्मक संवेदना में थरथराती अनूठी कल्पनाशीलता से ध्यान खींचती है।

रात हमारी तो चाँद की सहेली है। रात को ऐसा इससे पहले शायद किसी गीतकार ने नहीं देखा था। रात और चाँद सहेली के रिश्ते में धड़कते हैं। सहेलियाँ अक्सर साथ होती हैं। एक-दूसरे की गलबहियाँ डालें। अपने सुख-दुःख की बातें करती हुईं। हँसी-ठिठौली करती हुई। रात और चाँद इस प्यारे रिश्ते में बँधे हैं, लेकिन आज यह रात अकेली आई है। गीत इन पंक्तियों से शुरू होता है...

  युवा गीतकार स्वानंद किरकिरे ने इस रात को कुछ अलग अंदाज में देखा है, महसूसा है और फिर रचा है। फिल्म परिणीता के लिए उनके लिखे गीत के बोल हैं- रात हमारी तो चाँद की सहेली है। पंक्तियाँ अपनी काव्यात्मक संवेदना में थरथराती अनूठी कल्पनाशीलता से ...      
रतियाँ कारी रतियाँ, रतियाँ अँधियारी रतिया
रात हमारी तो चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद आई है अकेली ह
चुप्पी की बिरहा है, झिंगूर का बाजे साथ

यह काली और अँधियारी रात, जो चाँद की सहेली है, कितने दिनों के बाद आई है और आई भी है तो अकेली है। यह रात का मानवीयकरण है। इसमें अपनी मनःस्थिति को देखने का भाव है। उसे अपने जैसा अकेला देखने का भाव है।

  अँधेरा पागल है, कितना घनेरा है चुभता है, डसता है, फिर भी वो मेरा है उसकी ही गोदी में सर रख के सोना है उसकी ही बाँहों में छुप के से रोना है आँखों से काजल बन, बहता अँधेरा आज।      
यहाँ रात हमारी चाँद की सहेली तो है लेकिन किसी दूसरे मूड में है। यहाँ अँधेरा कुछ गाढ़ा है, घनेरा है। अकेलापन भी उतना ही गाढ़ा और घनेरा है। इस अकेलेपन में दुःख है। ऐसा दुःख जो शायद सिर्फ सहेली से ही कहा जा सकता है। सिर्फ सहेली को ही बताया जा सकता है।

विरह की चुप्पी है और झिंगूर की आवाज से इस रात की नीरवता और घनी हो गई है। सन्नाटा कुछ ज्यादा बढ़ गया है।

रात हमारी तो चाँद की सहेली है
कितने दिनों के बाद आई वो अकेली ह
संझा की बाती भी कोई बुझा दे आ
अँधेरे से जी भर के करनी हैं बातें आ
अँधेरा रूठा है, अँधेरा बैठा है, गुमसुम सा कोने में बैठा ह

होता है ऐसा जीवन में जब कुछ भी अच्छा नहीं लगता। कोई भी राहत नहीं देता। कोई बात से करार नहीं लगता। तब किसी भी तरह की रोशनी भाती नहीं। आँखों को वह चुभती है, लेकिन यहाँ बात सिर्फ रोशनी की नहीं है। संझा की बाती की है। संझा और बाती। ये दोनों शब्द हमारे जीवन से गायब हो गए हैं।

यह गीतकार इन शब्दों के जरिए एक खास वक्त की यादें भी ताजा करता है। संझा की जो बाती है उसकी रोशनी आँखों को चुभती नहीं लेकिन नायिक की तबियत कुछ नाजुक है। कुछ गहरी चोट है। इसलिए संपूर्ण अँधेरा चाहिए। इसलिए संझा की बाती भी नहीं चाहिए।

  इसीलिए उसकी गोदी में सिर रखने की इच्छा होती है। उसकी ही बाँहों में छुप के से रोने की इच्छा होती है। और फिर कायनात की सबसे चुप और खामोश घटना घटती है। यह जो अँधेरा है आँखों से काजल बनकर बह रहा है।      
शायद किसी खास मनःस्थिति में अँधेरा अच्छा लगता है। वही सच्चा लगता है। लगता है इस कारी रतियाँ में यह घनेरा अँधेरा ही दुःख में, दर्द में थाम लेगा। मन की बात की थाह लेगा और समझ लेगा। इसलिए इस सच्चे अँधेरे से जी भर कर बातें करने की बात है। फिर वह अँधेरा कितना भी गुमसुम, रूठा और कोने में ही क्यों न बैठा हो। आज हाँ, सिर्फ आज उसी से बातें करने का मन है।
अँधेरा पागल है, कितना घनेरा ह
चुभता है, डसता है, फिर भी वो मेरा ह
उसकी ही गोदी में सर रख के सोना ह
उसकी ही बाँहों में छुप के से रोना ह
आँखों से काजल बन, बहता अँधेरा आज।

अब अँधेरा तो अँधेरा है। यह कभी डसता भी है और चुभता भी है लेकिन नायिका प्रेम में इतनी आहत है कि वह इसके बावजूद उसे अपना मानती है। उसे अहसास है कि इससे कोई चोट न पहुँचेगी। कोई धोखा न मिलेगा। कोई खरोंच न मिलेगी। इससे आत्मा आहत नहीं होगी।

चोट खाई नायिका के लिए, आँसू बहाती नायिका के लिए यह अँधेरा ही सच्चा साथी है। रात का अँधेरा। वह रात जो चाँद की सहेली और आज बहुत दिनों के बाद अकेली आई है।

और शायद इसीलिए उसकी गोदी में सिर रखने की इच्छा होती है। उसकी ही बाँहों में छुप के रोने की इच्छा होती है।
और फिर कायनात की सबसे चुप और खामोश घटना घटती है। यह जो अँधेरा है आँखों से काजल बनकर बह रहा है। यह गीत, गीत में अच्छी कविताई का एक और उदाहरण है। इसे सुनिए, महसूस कीजिए।

आपको लगेगा हाँ यह रात चाँद की सहेली है जो अकेली है।
यह गीत चोट खाई नायिका के अकेलेपन का गीत है। अँधेरे को अपना मीत मानने का गीत है। अँधेरे में विश्वास करने का, उसमें सिर रखकर चुपचाप रोने का गीत है। इस रात में रोने को सुनिए। हो सकता है, इसमें आपको अपना रोना भी सुनाई दे।

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