अचेतन की आकृतियाँ

काफ्का पर लिखे गए गद्य पर संगत-प्रेरित कलाकृति

रवींद्र व्यास
Ravindra Vyas
WD























उसे लगता था उसके भीतर कोई पशु है। बार बार अपने अचेतन की आकृतियों में से जो मध्यकाल की पशुओं के चित्रों वाली किसी किताब की तरह विराट थीं वह अपने भीतर किसी सोते हुए गुबरैले को महसूस करता था। जमीन में सुरंगें खोदते किसी छछूंदर को, उस चूहे को जो आदमी के आते ही भाग जाता है, एक फड़फड़ाते चमगादड़ को, हमारे रक्त पर पलने वाले किसी परजीवी कीट को, एक भुतहा जानवर को जो हताश किसी गड्ढे में या अपनी मांद में पड़ा होता है, राख के रंग के कौए को जिसके पंख पूरी तरह विकसित नहीं होते।

एक गुर्राते हुए कुत्ते को जो उसके चैन में खलल डालने वाले हर शख्स को दाँत दिखाता है या एक बुत के चारों तरफ परेशान भौंकता दौड़ता रहता है। कभी दो जानवरों से बने जीव को जिसका शरीर भेड़ का है और सिर और पँजे बिल्ली के और जिसकी आँखों में दोनों की मिलीजुली चमक है ।
( मशहूर चेक उपन्यासकार फ्रांज काफ्का पर लेखक पिएत्रो सिताती की किताब का एक टुकड़ा)

काफ्का को समझने की बेहतरीन कोशिशें हुई हैं। पिएत्रो सिताती ने उन पर किताब लिखी है। इसके कुछ अनुवादित हिस्से पढ़ने को मिले। यह काफ्का को पढ़ने का एक नायाब जतन है। जब से ये गद्यांश पढ़े हैं एक अजीब सी हताशा और निराशा का भाव घर कर गया है। कभी एक सिहरन सी उठती है और पता नहीं किन-किन दबी परतों को उघाड़ जाती है।

हमेशा एक ताप महसूस होता है इन गद्यांशों को पढ़ते हुए। हलका बुखार। मैं अजीब सी आदतों का शिकार होता रहा हूँ। मुझे लगता है मैं कभी भी, कहीं भी बड़बड़ाने लगता हूँ। कोई देखता है तो हँसता है। कितनी सारी चाही-अनचाही चीजें हमारे अचेतन में पड़ी रहती हैं और और मौका मिलते ही अपने आप बाहर आने लगती हैं जैसे बरसों पुरानी लकड़ियों में छिपे बिलबिलाते कीड़े। क्या सचमुच हमारे भीतर भी कोई सोता हुआ गुबरैला है। हमारे ही रक्त पर पलने वाला कोई परजीवी कीट। शायद।

यही शायद हमें धीरे धीरे कुतरता है। जर्जर करता हुआ, एक बुरादे में बदलता हुआ। कई तरह के भय और कई तरह के आतंक पता नहीं कहाँ-कहाँ हम पर असर डालते हैं। कहाँ-कहाँ और किस तरह की जान लेवा यातनाएँ देते हैं। जिसे न तो हम सह पाते हैं और न ही उनके दबाव में मर पाते हैं। जीने और मरने के बीच की एक अंतहीन यातना।

ये टुकड़े पढ़ो तो लगता है काफ्का ताउम्र कितनी असह्य यातनाओं से गुजरे होंगे। कितने आतंक उन्होंने सहे होंगे। यह किताब हमें काफ्का के अंधेरों, काफ्का की यातनाओं और जिन रेशों से वे बने और उनका साहित्य रचा गया उसकी एक मार्मिक झलक देते हैं। इन्हें पढ़कर काफ्का की अंधेरी दुनिया की यातनामय यात्रा की जा सकती है। और सिर्फ अंदाजा और अंदाजा ही लगाया जा सकता है उनकी अंतहीन यातना का। शायद ये उनकी अचेतन आकृतियों को समझने की एक गजब की कोशिश है।

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