"बचपन में खेतों और बगीचों में मिट्टी, पेड़, पौधे, तितली, फूल, हवा, पानी और बीज अंकुरण से जो जीवन के गहरे पाठ पढ़े वही आज मेरी रचनाओं में लौट लौट कर आते हैं। घुमक्कड़ी और बिंदास जीवन का फलसफा मुझे निरंतर सीखने और सीखे हुए को सुव्यक्त करने की प्रेरणा देता है, बस यही मेरी रचनाधर्मिता है" उक्त विचार शहर की संवेदनशील और चिंतनशील लेखिका ज्योति जैन ने व्यक्त किए।
वे अपनी दो पुस्तकों जीवन दृष्टि और यात्राओं का इंद्रधनुष के विमोचन के अवसर पर बोल रही थीं। रविवार 16 दिसंबर को हुए वामा साहित्य मंच के बैनर तले एक गरिमामयी कार्यक्रम में उनकी इन पुस्तकों ने साहित्य संसार में दस्तक दी।
इस अवसर पर लब्ध प्रतिष्ठित साहित्यकार और शिवना प्रकाशन के निदेशक पंकज सुबीर, अहिल्या बाई होलकर एयरपोर्ट की निदेशक आर्यमा सान्याल तथा पद्मश्री से सम्मानित भालू मोंढे मुख्य अतिथि और चर्चाकार के रूप में मौजूद थे।
तीनों ही अतिथियों ने लेखिका ज्योति जैन की सक्रियता,रचनात्मकता और संवेदनशीलता की प्रशंसा की और कहा कि बदलते वक्त में जबकि इतना कुछ लिखा जा रहा है जमीनी और जरूरी लेखन सिमट रहा है, ऐसे में ज्योति जी की रचनाएं आश्वस्त करती हैं, उनकी सभी कृतियों की खास बात है कि वे सकारात्मकता से भरपूर हैं। वे उजालों की समर्थक हैं पर अंधेरों से डरती नहीं हैं, डट कर सामना करती हैं।व्यक्तिगत जीवन में भी वे ऐसी ही हैं।अपनी जिम्मेदारियों से विमुख नहीं होती हैं और अपने स्व की भी रक्षा करती है।इस बीच वे लेखन की निरंतरता का क्रम टूटने नहीं देती और मुस्कुराते हुए आगे निकल जाती है।
पुस्तक यात्राओं का इंद्रधनुष में उनके यात्रा संस्मरण इतने मासूम और जीवंत हैं कि पाठक को अपने साथ दुनिया घूम कर आने का अहसास देते हैं।प्रकृति उन्हें चकित भी करती है और वे उसके सौंदर्य को पूर्णता से अभिव्यक्त करने में भी सफल होती हैं।पुस्तक जीवन दृष्टि में उनके विविध अवसर पर प्रकाशित विचार और आलेख हैं जो हमारे आसपास ही बिखरे ओस कण की तरह हैं जो लुभाते हैं प्रभावित करते हैं और जीवन जीने की कला सिखाते हैं।
साहित्यकार पंकज सुबीर ने कहा कि इन दिनों कथा से इतर गद्य या साहित्य खूब लिखा जा रहा है, और साहित्य के लिए शुभ संकेत है कि इस कथेतर साहित्य से युवा पाठक पूरी दिलचस्पी से जुड़ रहे हैं।ज्योति जी की दोनों किताबें कथेतर गद्य का प्रतिनिधित्व करती हैं।इनमें कहानी से अलग वास्तविकता का रस है।
कार्यक्रम के आरंभ में वामा साहित्य मंच की ओर से वीना नागपाल, मंजु व्यास, शारदा मंडलोई और परिवार की तरफ से चानी जैन कुसुमाकर, रितेश जैन और स्वामी ने अतिथियों का स्वागत किया।
गरिमा संजय दुबे ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की, स्वागत उद्बोधन वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र ने दिया। स्मृति चिन्ह शरद जैन, राजेन्द्र तिवारी और कोणार्क जैन ने दिए।
संचालन स्मृति आदित्य ने किया और आभार माना डॉ. किसलय पंचोली ने। जाल सभागार में सम्पन्न इस अवसर पर शहर के जाने माने साहित्यकारों ने अपनी उपस्थिति दी।