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मीना कुमारी के आखिरी पल में न शोहरत बची, न शौहर का साथ!

हमें फॉलो करें मीना कुमारी के आखिरी पल में न शोहरत बची, न शौहर का साथ!
- सुरभि भटेवरा

मीना कुमारी हिन्दी सिनेमा की बेहतरीन एक्ट्रैस में शुमार थीं। आज भी उनका नाम बड़ी अदब से लिया जाता है।
छोटी उम्र से ही उन्होंने परेशानियों को झेलना सीख लिया था। 7 साल की उम्र से घर की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली थी। बहुत ही रोमांचित कर देनी वाली कहानी है मीना कुमारी की। आइए जानते हैं- 
 
मीना कुमारी का नाम असली नाम महजबीन था, 1 अगस्त 1932 को उनका जन्म हुआ था। मां का नाम इकबाल बेगम और पिता का नाम अली बख्श था। बचपन से घर की स्थिति नाजुक थी। डॉक्टर को देने के लिए पैसे नहीं थे। माता-पिता ने अस्पताल में ही मीना का छोड़ने का निर्णय लिया लेकिन पिता ऐसा कर नहीं सकें। 
 
घर की परिस्थिति को देखकर मीना कुमारी ने 7 साल की उम्र से ही फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। उनकी पहली फिल्म थी ‘फरजद-ए-हिंद’। इसके बाद अन्नपूर्णा, सनम, तमाशा, लाल हवेली आदि। लेकिन असली पहचान उन्हें फिल्म बैजू बावरा से मिली। यह फिल्म 1952 में आई थी। इसके बाद मीना कुमारी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
 
कमाल अमरोही से प्यार, शादी और फिर तकरार 
 
मीना कुमारी को कमाल अमरोही ने फिल्म ऑफर की लेकिन वह फिल्म नहीं बन सकी, पर दोनों के बीच प्यार जरूर पनप गया। दोनों एक-दूसरे के प्यार में पागल होने लगे थे। कमाल के दोस्त ने दोनों को निकाह करने की सलाह दी। हालांकि मीना अपने अब्बू की इजाजत के बिना राजी नहीं हुई थी, लेकिन कमाल ने उसे राजी कर लिया और कहा- सही वक्त देखकर अब्बू को बताने को कहा। दोनों ने चोरी छुपके निकाह कर लिया और फिर अपने-अपने घर चले गए। हालांकि कमाल अमरोही पहले से ही शादीशुदा थे। 
 
मीना कुमारी और कमाल अमरोही के निकाह से अली बख्श काफी नाराज़ थे। उन्होंने दोनों के मिलने पर पाबंदी लगा दी। फिल्म डेरा के लिए कमाल अमरोही को मीना कुमारी की जरूरत थी लेकिन अब्बू राजी नहीं थे। हालांकि मीना कुमारी ने फिल्म डेरा की शूटिंग की। लेकिन मीना जब अपने घर लौटी तो अब्बू ने मीना से सभी रिश्ते खत्म कर दिए। इसके बाद मीना कुमारी की अपने ससुराल में एंट्री हुई। लेकिन सुकुन वहां भी नहीं था। 
 
एक तरफ जहां मीना कुमारी शोहरतें पा रही थी दूसरी ओर कमाल और मीना रिश्तों में दरार पड़ने लग गई थी। दोनों ने एक-दूसरे को तलाक देने की बात कही। करीब 14 साल बाद दोनों की एक बार फिर मुलाकात हुई और कमाल को देखते ही मीना कुमारी हाथ पकड़कर जोर-जोर से रोने लगी। 
 
वक्त बदलने लगा। कमाल अमरोही फिल्म ‘पाकिजा’ बनाना चाहते थे। लेकिन आर्थिक तंगी के कारण फिल्म नहीं बन सकी। मीना कुमारी ने अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। लेकिन फिल्म नहीं बन सकी। सुनील दत्त और नरगिस ने इस फिल्म को बनाने के लिए पहल की और 1972 में यह फिल्म पर्दे पर आई। 
 
हालांकि इस बीच मीना कुमारी की तबीयत बिगड़ने लगी। नींद नहीं आने की समस्या होने लगी। डॉक्टर्स ने सलाह दी हर दिन एक पैग लगाए। मीना कुमारी को लत लग गई और हालात दिन पर दिन बिगड़ते चले गए। आखिरी समय में मीना कुमारी के पास कोई नहीं रहा। अंततः पति का प्यार भी नहीं मिल सका। 
 
3 फिल्मों का चयन- 
मीना कुमारी ने वक्त के साथ कई शोहरत भी पाई। कमाल अमरोही को मीना कुमारी से जलन होने लगी। एक कार्यक्रम में जब मीना कुमारी को अधिक तवज्जों मिलने लगी तो कमाल वहां से तमतमा कर चल दिए और मीना कुमारी पर कई तरह की पाबंदियां लगाना शुरू कर दी। 1960 के बाद मीना कुमारी की किस्मत के तारे चमकने लगे। फिल्म परिणीता, दिल अपना प्रीत पराई, श्रद्धा, आजाद, कोहिनूर जैसी फिल्में की। 1963 में उन्हें दसवें फिल्मफेयर अवॉर्ड में बेस्ट एक्ट्रेस के लिए नॉमिनेट किया। फिल्म मैं चुप रहूंगी, आरती और साहिब बीवी और गुलाम नॉमिनेट की गई। इन तीनों फिल्मों में मीना कुमारी लीड रोल में थी। 
 
आखिरी वक्त में मीना कुमारी को लिवर की समस्या अधिक होने लगी और 31 मार्च 1972 में दुनिया को अलविदा कह दिया। 


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