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लॉकडाउन में कैसे बना मुंबई के कलाकारों का कोरोना जागरुकता गीत-‘शत्रु ये अदृश्य है’

हमें फॉलो करें लॉकडाउन में कैसे बना मुंबई के कलाकारों का कोरोना जागरुकता गीत-‘शत्रु ये अदृश्य है’
, गुरुवार, 4 जून 2020 (13:48 IST)
कविता पर नज़र पड़ी। उसकी धुन बनी। फिर रंगमंच और फिल्म के कलाकार दोस्तों का साथ मिला और बन गया कोरोना संकट के प्रति लोगों को जागरुक करने वाला गीत-‘शत्रु ये अदृश्य है।‘

यह गीत सोशल मीडिया पर अब काफी चर्चित हो रहा है। आख़िर लॉकडाउन में कैसे बना एक कविता से यह दिलचस्प गीत। बता रहे हैं इसके संगीतकार आमोद भट्ट। आमोद भट्ट ने कई फिल्मों और धारावाहिकों के साथ ही सौ से ज्यादा नाटकों में संगीत दिया है।

जब पड़ी एक कविता पर नज़र
आमोद बताते हैं, करीब एक महीने पहले 'शत्रु ये अदृश्य है' कविता पढ़ने में आई थी। उस वक्त पता नहीं था कि यह कविता किसने लिखी है। कविता ‘अग्निपथ’ की तर्ज पर लिखी गई थी। इसे कोरोना के प्रति जागरुकता के लिये राजस्थान पुलिस ने प्रचारित किया था। बाद में राजस्थान पुलिस के एडीजी बीएल सोनी से संपर्क करने पर पता चला कि यह कविता रेलवे के प्रोटेक्शन फोर्स में तैनात एक अधिकारी शरद गुप्ता ने लिखी है। उनसे बाद में संपर्क हुआ। मगर पहले मैंने इस गीत की धुन पर काम करना शुरू किया। धुन के संयोजन के लिये दोस्त आलाप दुदुल का साथ मिला। उन्होंने अपनी ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई।'

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कविता को मिली उदित की आवाज़
आमोद कहते हैं, ‘धुन और संगीत संयोजन पर काम जारी था। मगर इस गीत के लिये एक अच्छी आवाज़ की ज़रूरत थी। चूंकि मैं मशहूर सिने गायक उदित नारायण के साथ पहले कुछ फिल्मों के लिये रिकॉर्डिंग कर चुका हूं। उनके साथ एक करीबी रिश्ता है। इसलिये मैंने सहज ही उनसे बात करना उचित समझा। उन्हें मोबाइल पर ही धुन भेज दी। धुन उन्हें बेहद पसंद आई। इसके बाद उन्होंने मेरे आग्रह पर कोरोना के प्रति जागरूकता जगाने वाले इस गीत को गाना मंज़ूर कर लिया। सहयोगी गायक के रूप में मेरे साथ मेरी पत्नी रूबी भट्ट ने साथ दिया’

जब कविता में जोड़ी ज़रुरी पंक्तियां
शरद गुप्ता की कविता अब साज़ और आवाज़ में ढलने लगी थी। मगर काम करते वक्त इसकी एक पंक्ति -'मत निकल, मत निकल' का बार-बार उपयोग होना बदले हालात में ठीक नहीं लग रहा था। असल में गीत के पब्लिश होने तक लॉकडाउन खोले जाने के हालात बन रहे थे।

इसलिये अब गीत में इस एक लाइन के साथ ही ऐसी लाइनों की ज़रुरत थी, जो लोगों को संयम बरतने, धीरज रखने और विजयी होने की बात कहती हों। ऐसे ही में मुझे मेरे राइटर दोस्त शकील अख़्तर का खयाल आया। उनके लिखे गीत मैंने नाटक- 'ये फिल्म है ज़रा हटके' के लिये कंपोज़ किये हैं। मैं जानता था कि वे इसके लिये वे तुरंत ही बेहतर लाइनें लिखकर दे सकते हैं। इस तरह एडिशनल लिरिक्स के लिये उनके लेखन से बात बन गई।

सतीश कौशिक, राजेंद्र गुप्त का म‍िला साथ
आमोद कहते हैं, इस गीत को अब ऐसे अभिनेताओं की अपील के साथ पहुंचाना था, जिन्हें लोग जानते हैं। ऐसे में रंगमंच और फिल्मों से जुड़े राजेंद्र गुप्त, सतीश कौशिक, हेमंत पांडे और मंत्र मुग्ध जैसे सेलिब्रिटी कलाकारों का भी सहयोग मिला। इनके साथ और भी कलाकार जुड़े। अपने-अपने घरों में इसका वीडियो कलाकारों ने अपने-अपने स्तर पर शूट किया। मुम्बई, गौहाटी, भोपाल, जयपुर में मोबाइल पर ही इसके वीडियो शूट हुए। गीत के वीडियो संकलन में मुझे मेरे दोस्त कौस्तव पटेल का साथ मिला। जबकि पीहू भट्ट ने भी उनकी मदद की। यहां यह कहना ज़रूरी होगा कि इसके निर्माण में मुझे आदित्य नारायण, दीपा नारायण और राजस्थान पुलिस के एडीजी बीएल सोनी का अहम सहयोग मिला। इसी तरह पूर्वा और सुयश जैसे कलाकारों का। मुझे खुशी है लोग गीत पसंद कर रहे हैं। हम कलाकारों ने ज़रूरत के समय में अपनी कला का सही सदुपयोग किया है।

संक्रमण से खुद को बचाना ज़रूरी है
आमोद का मानना है, ये गीत अभी इसलिये भी ज़रूरी है क्योंकि एक तरफ देश में लॉकडाउन अब धीरे-धीरे खत्म हो रहा है तो दूसरी तरफ कोरोना संक्रमण का आंकड़ा 2 लाख की संख्या पार कर गया है। अब बरसात की देश में दस्तक होने वाली है। ऐसे में हमें सामाजिक दूरी, मास्क, हैंड वॉश जैसी बातों का हर वक्त खयाल रखना होगा। ज़रूरी होने पर ही निकलना ठीक होगा। यही इस गीत का संदेश भी है। 
 

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