कहानी, अनुवाद, साहित्य सृजन और कविताओं को लेकर कई खूबसूरत बात पद्मश्री से सम्मानित सुविख्यात संवेदनशील कथाकार मालती जोशी ने कही।
जानीमानी साहित्यकार मालती जोशी इन दिनों निजी प्रवास पर शहर में हैं और वे एक साहित्यिक आयोजन में शिरकत कर रही थीं....शहर की लोकप्रिय रचनाकार ज्योति जैन की कृति 'मां बेटी' की श्रीमती सुषमा मोघे द्वारा मराठी में अनुदित पुस्तक ''आई लेक'' के विमोचन समारोह में उन्होंने शहर के साहित्यप्रेमियों से मन की बातें साझा की।
वामा साहित्य मंच और शासकीय अहिल्या केंद्रीय पुस्तकालय के बैनर तले प्रीतमलाल दुआ सभागार में संपन्न इस आयोजन की अध्यक्षता की साहित्यकार लिली डाबर ने। मंचासीन अमर चढ्ढा, अध्यक्ष, वामा साहित्य मंच, रचनाकार ज्योति जैन सहित अनुवादक सुषमा मोघे ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
मालती जी ने अपनी प्रिय कहानी बिदा और कविताओं का अपनी स्मृति के आधार पर धाराप्रवाह वाचन किया। सभागार में उपस्थित हर आंखें बार बार उनके कथोपकथन से नम होती रहीं।
कार्यक्रम के आरंभ में बिंदु मेहता ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। स्वागत उद्बोधन श्रीमती अमर चढ्ढा ने दिया। ज्योति जैन ने अपनी पुस्तक मां बेटी के मराठी भाषा में आने पर प्रसन्नता व्यक्त की और मराठी भाषा में ही अपनी बात रखी।
उन्होंने कहा कि मां बेटी मुझे अपनी हर कृति से थोड़ी ज्यादा प्रिय है क्योंकि इसमें मां भी है और बेटी भी.... जीवन में हर रिश्ता अनमोल है पर ये दो रिश्ते बहुत खामोशी से थोड़ी सी जगह ज्यादा ले लेते हैं...रिश्तों को शब्दों में बांध पाना असंभव है और अपनी कृति में मैंने इन दोनों को ही अपने मन के सबसे सुंदर कोने से अभिव्यक्त किया है। मराठी भाषा के पाठकों को यह पुस्तक कैसी लगेगी मैं नहीं जानती पर इतना अवश्य जानती हूं कि अनुवाद करते हुए सुषमा जी ने हर रचना के साथ वैसा ही न्याय किया है जैसा एक अनुवादक को करना चाहिए....ना उन्होंने अपनी तरफ से कुछ जोड़ा है न मेरा कहा कुछ छोड़ा है और यही एक अनुवादक की सफलता है।
ज्योति जैन की बेटी चानी कुसुमाकर और सुषमा मोघे की बेटी नंदिनी मोघे ने भी अपनी अनुभूति व्यक्त की।
अनुवादक सुषमा मोघे ने अनुवाद के दौरान अपने अनुभवों को साझा किया और बताया कि क्यों ज्योति जैन की कृति मां बेटी उन्होंने चयन की और कैसे यह किताब उनके मर्म को स्पर्श कर गयी।
मालती जोशी ने इस अवसर पर वामा साहित्य मंच की सदस्यों के सवालों के जवाब भी दिए और भावप्रवण शैली में रचनाएं प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि अपने लेखक होने का दंड परिवार को नहीं दिया मैंने ...
इस मौके पर संगीता परमार ने मूल और अनुवादित कृति से चयनित दो कविताओं का मराठी और हिन्दी में वाचन किया। आरंभ में स्वागत शुभश्री अंबर्डेकर एवं नंदिनी कानेटकर द्वारा किया गया। आभार अंजली खांडेकर ने माना। स्मृति चिन्ह पूजा मोघे ने प्रदान किए। कार्यक्रम का संचालन निधि जैन ने किया।