नर्मदा नदी में रेत के अवैध उत्खनन का गोरखधंधा बदस्तूर जारी है। न केवल शासन को लाखों रुपए का चूना प्रतिदिन लग रहा है, वहीं जीवनदायिनी कही जाने वाली नर्मदा नदी संकट में है। इस महत्वपूर्ण नदी पर अब पर्यावरणीय खतरा भी मंडराने लगा है। समूचे निमाड़ क्षेत्र में नर्मदा के दोनों किनारे अपने मूल स्वरूप को खोते जा रहे हैं। इस प्रक्रिया के कारण नर्मदा का पाट दिनोंदिन चौड़ा होता जा रहा है। किनारों पर बनते कटाव ने नर्मदा के खूबसूरत सौंदर्य को भी प्रभावित किया है।
पर्यावरण प्रेमी व लेखक अमृतलाल वेगड़ (जबलपुर) ने चिंता जताते हुए कहा था कि बांधों के निर्माण से जहां नदी के वेग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, वहीं रेत माफियाओं ने नदी के सौंदर्य को तहस-नहस कर दिया है। सरकार को चाहिए कि नर्मदा के सौंदर्य के साथ खिलवाड़ करने वालों पर नकेल कसे। अवैध रेत उत्खनन एवं नर्मदा किनारे पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से निर्मित किनारों के कटाव का प्रतिकूल प्रभाव नर्मदा के प्रवाह पर भी पड़ सकता है। कई स्थानों पर नर्मदा के पाट की चौड़ाई भी बढ़ी है। साथ ही रेत उत्खनन के कारण उसका धरातल असंतुलित हो चुका है। समय रहते इन कटावों को नहीं रोका गया तो नदी का वेग धीमा हो सकता है।
उल्लेखनीय है कि क्षेत्र में कथित तौर पर अवैध रेत उत्खनन के बेखौफ कारोबार में अब आपसी रंजिश और गैंगवार के हालात दिखने लगे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने भी दावा किया है कि रेत के अवैध उत्खनन के कारण ही यह स्थिति बन रही है। सरदार सरोवर जलग्रहण क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों के दौरान पर्यावरणीय मापदंडों एवं मंजूरी का घोर उल्लंघन हुआ है।
विलुप्त हो रहे जलीय पादप
अवैध रेत उत्खनन और नर्मदा किनारे अंधाधुंध पेड़ों की कटाई का प्रभाव अब जलीय पादपों पर भी दिखने लगा है। पानी के धरातल पर असंतुलन की स्थिति से शैवाल की प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसकी रोकथाम के लिए पर्यावरणीय संतुलन पर ध्यान देना होगा। यह शैवाल प्रजाति नाइट्रोजन स्थिरीकरण के लिए महत्वपूर्ण है।
पर्यावरण प्रेमी व लेखक अमृतलाल वेगड़ कहते थे, 'कोई वादक बजाने से पहले देर तक अपने साज का सुर मिलाता है, उसी प्रकार इस जनम में तो हम नर्मदा परिक्रमा का सुर ही मिलाते रहे। परिक्रमा तो अगले जनम से करेंगे।"