Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

आखिर हम दो चीजों के बीच ही तो भटके हुए हैं— कल्‍पना और यथार्थ

हमें फॉलो करें nirmal verma and kbv
webdunia

नवीन रांगियाल

जिस हिंदी साहित्‍य में छिछली भावुकता का सबसे ज्‍यादा प्रदर्शन होता है, उसी साहित्‍य में केबीवी (कृष्‍ण बलदेव वैद) अपने कड़वे लहजे में, अपने यथार्थ में इतने लोकप्रिय हुए और पसंद किए गए कि वो सारे सम्‍मान बहुत छोटे नजर आते हैं, जो उन्‍हें हिंदी साहित्‍य के आकाओं ने उन्‍हें नहीं दिए. अच्‍छा भी हुआ.

जिस दुनिया और दौर में जरूरत पड़ने पर एक व्‍यक्‍ति, आदमी हो जाए और जरुरत पड़ने पर लेखक हो जाए, वहां केबीवी एक आदमी और लेखक के तौर पर अलग-अलग नहीं हुए. वे बतौर आदमी और लेखक एक ही थे. एक कलाकार अगर जिंदगीभर ऐसा रियाज करे तो भी वो ये एकाकार हासिल नहीं कर सकता, जो वैद साब ने किया.  
मैं अक्‍सर उनकी किताबें निकालकर अपने सिरहाने अपने आसपास रख लेता हूं— इसलिए नहीं कि वो कोई पवित्र ग्रंथ हैं मेरे लिए, बल्‍कि उन किताबों का करीब होना इस बात का यकीन है कि हमें जिंदगी में कुछ और नहीं चाहिए सिवाए लिखने के.

केबीवी मेरे लिए उस लहजे की तरह थे, जो हिंदी साहित्‍य में किसी ने नहीं बरता. किसी के पास इस लहजे को बरतने का न साहस था और न ही शऊर. (उर्दू में शआदत हसन मंटो को छोड़ दें तो), जहां हर तरफ प्रेम, कल्‍पना और स्‍मृतियों की पोएट्री में डूबकर मरे जा रहा था, वहां वैद साब जिंदगी का सबसे कर्कश राग गा रहे थे, सबसे भयावह आलाप ले रहे थे. जिसे सुनने की कुव्‍वत शायद किसी में नहीं थी.

लेखन की इस दुनिया में घसीटते हुए आ पहुंचा मैं भी धीमे-धीमे एक फिक्‍शन बीस्‍ट में बदलते जा रहा हूं. मेरे पास जिंदगी का यथार्थ है किंतु उसे दर्ज करने का माद्दा नहीं है. मैं एक काल्‍पनिक जानवर बन रहा हूं.  
संभवत: यही वजह रही होगी कि वैद साब ‘मिसफिट’ थे. या वे अपने दौर की उस छिछली बुनावट में फिट नहीं हो सके.

अगर कृष्‍ण बलदेव वैद और निर्मल वर्मा जैसे लेखक नहीं होते तो मुझ जैसे लोगों की जिंदगी में एक बड़ा सा Void होता. एक शब्‍दहीन शून्‍य. मनुष्‍य होने का एक स्‍तरहीन खालीपन.

केबीवी और निर्मल वर्मा. दो महान लेखक. एक कल्‍पना का रचनाकार. दूसरा यथार्थ को नोचता, उखड़ी हुई जिंदगी की सीलन को लिखता हुआ लेखक.

हमे ये दो लेखक ही तो चाहिए थे. आखिर हम इन्‍हीं दो चीजों के बीच ही तो भटककर गुम होते रहते हैं. कल्‍पना और यथार्थ. फिक्‍शन एंड रिअलिटी. व्‍हाट यू नीड एल्‍स?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

साहित्यकार ज्योति जैन अखिल भारतीय विष्णुकांत शास्त्री पुरस्कार से सम्मानित