- डॉ. उर्मिला शिरीष
* स्पंदन द्वारा विचार संगोष्ठी एवं लोकार्पण समारोह
ललित कलाओं के प्रशिक्षण, प्रदर्शन एवं शोध की अग्रणी संस्था स्पंदन द्वारा सुपरिचित कथाकार, उपन्यासकार, कवि पंकज सुबीर के बहुचर्चित ग़ज़ल संग्रह 'अभी तुम इश्क़ में हो' पर विचार संगोष्ठी का आयोजन इ़कबाल लाइब्रेरी सभागार में किया गया।
स्पंदन की संयोजक वरिष्ठ कथाकार डॉ. उर्मिला शिरीष ने बताया कि संगोष्ठी की अध्यक्षता डॉ. अंजनी कौल ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. बिलकीस जहां उपस्थित थीं। पुस्तक पर अतिथि वक्ता के रूप में एनसीईआरटी के पूर्व प्रोफ़ेसर प्रो. डॉ. मो. नोमान ख़ान तथा मप्र उर्दू अकादमी के पूर्व उप सचिव इक़बाल मसूद ने अपना वक्तव्य प्रदान किया। इस अवसर पर 'अभी तुम इश्क़ में हो' के पेपरबैक संस्करण का लोकार्पण भी किया गया।
इस अवसर पर बोलते हुए पंकज सुबीर ने कहा कि भाषाओं के माध्यम से आपसी सौहार्द और परस्पर विश्वास को फिर से जीवित किए जाने की आज के समय में सबसे बड़ी आवश्यकता है और इसके लिए काम किया जाना चाहिए। डॉक्टर अख्तर नोमान ने पुस्तक पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह ग़ज़लें उर्दू की रवायती शायरी और पारंपरिक ग़ज़लों की परंपरा को निभाती हुई गजलें हैं, इनकी भाषा बहुत नाजुक और दिल को छूने वाली है। इक़बाल मसूद ने कहा कि पंकज सुबीर मूलतः कहानीकार हैं, लेकिन उनकी ग़ज़लों में भी वही भाव प्रवणता दिखाई देती है जो उनकी कहानियों में होती हैं, उनकी गजलें उर्दू के छंद शास्त्र की रवायतों का पूरा पालन करती हैं। यह गजलें उर्दू तथा हिंदी दोनों भाषाओं के बीच पुल का काम करती हैं।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में एक मुशायरे का भी आयोजन किया गया, जिसमें सैफ़ी सिरोंजी, हसीब सोज़, इक़बाल मसूद, अख़्तर वामिक़, ज़फ़र सहवाई, फ़ारूक़ अंजुम, परवीन कैफ़, पंकज सुबीर, दर्द सिरोंजी एवं कार्यक्रम सूत्रधार बद्र वास्ती ने अपनी ग़ज़लों का पाठ किया। कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ शायर एवं सुप्रसिद्ध रंगकर्मी बद्र वास्ती ने किया। अंत में आभार स्पंदन की संयोजक डॉ. उर्मिला शिरीष ने किया।
उन्होंने कहा कि यह दोनों भाषाओं के बीच एक सेतु बनाने का प्रयास है तथा इस सिलसिले को आगे भी जारी रखा जाएगा। उन्होंने प्रेमचंद जयंती का कार्यक्रम इकबाल लाइब्रेरी में ही किए जाने की घोषणा भी की तथा सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। इससे पूर्व सभी अतिथियों का स्वागत स्पंदन की ओर से डॉक्टर शिरीष शर्मा ने किया तथा उन्होंने सभी अतिथियों एवं आमंत्रित शायरों को स्मृति चिन्ह प्रदान किए। इस अवसर पर बड़ी संख्या में प्रबुद्ध साहित्यकार सभागार में उपस्थित थे।