भगवान का दिया हुआ सब कुछ है।
तौलिया है,
साबुन है,
बाल्टी है,
मग है,
पानी है पर नहाने की हिम्मत नहीं है।
वैसे नहाने से कुछ नहीं होता, आदमी दिल का साफ़ होना चाहिए।
इतनी सर्दी में नहाना अपनी समझ से तो बाहर है।
जिस शब्द में ही आगे 'न' है और पीछे ना है तो
बीच में ये दुनिया
'हा' कराने पर क्यों तुली है ??