पोहा मुझे हमेशा उस क्यूट सीधे-साधे लड़के की तरह लगता है जो सबसे पहले तैयार होकर बैठ जाता है और जलेबी उस इतराती हुई लड़की की तरह लगती है जिसे अभी और तैयार होना बाकी है ।
जलेबी जब बलखाते हुए चाशनी की कढ़ाई से बाहर आती है तो जैसे पोहे की तो सांसे ही अटक जाती है । पोहा जानता है कि उसने हर सुबह कढ़ाई में पसरतें हुए जलेबी को चाशनी से बाहर आते हुए देखा है लेकिन हर बार उसका जलेबी को देखना 'पहली बार' देखने जितना रोमांचक होता है।
चाशनी में लिपटी जलेबी और जीरावन भुरभुराया पोहा एक दूसरे को देखते हैं तो इशारों इशारों में बताते हैं कि वो कितने 'हॉट' लग रहे हैं । लिटरली भी ।
आलूबड़ा-समोसा किन्हीं शादीशुदा अधेडो़ की तरह आंखों के कोनों से नजरे चुरा चुरा कर जलेबी को ताड़ते हैं । और जलेबी जैसे बिना उन्हें भाव दिए अपनी ड्रेस ठीक करते हुए निकल जाती है ।
और फिर रात भर का 'पोहा जलेबी' का भूखा मालवावासी जब एक प्लेट पोहा और थोड़ी सी जलेबियां मांगता है तो जैसे पोहा जलेबी के मन की मुराद पूरी हो जाती है, उनके मिलन की बेला आ जाती है और थोड़ी ही देर में पोहे का जर्रा जर्रा जलेबी के बदन पर लिपटा हुआ पाया जाता है ।