कल पत्नी ने पोंछा लगाकर पोंछे का कपड़ा मुझे देते हुए कहा.... कि इसे धूप में डाल दीजिए...........
मैं पोंछे का कपड़ा धूप में डाल ही रहा था, कि सामने वाली भाभी ने मुझे देख लिया और मेरे नजदीक आकर बोली....
भाभी - ये क्या भैया? पोंछे का कपड़ा आप सुखा रहे हैं...
मैं - हां भाभी, जब मैंने पोंछा लगाया है तो मैं ही सुखाऊंगा न....
भाभी - अच्छा.... तो पोंछा आपने लगाया है ?
मैं - हां....मैंने ही लगाया है इसमें चौंकने वाली बात क्या है इसके पहले मैंने बर्तन भी मांजे थे....अभी जाले भी निकालने हैं....मेरा भी घर है.... मैं भी तो रहता हूं... कि बस खाने पीने का ही साथी बन जाऊं.... बेचारी औरतें क्या क्या करेंगी ? दिनभर कुछ न कुछ तो करती ही रहती हैं.... और नाम कुछ नहीं.... रोज रोज तो नहीं, कम से कम रविवार को तो काम कर सकते हैं....क्या महिलाओं को आराम करने का अधिकार नहीं है ? मेरे ख्याल से प्रतिदिन कुछ न कुछ काम तो करना ही चाहिए....और रविवार को तो थोड़ा ज्यादा ही करना चाहिए....
बस फिर क्या ?
भाईसाब जो घर पर फ्री रहते थे....अब भाईसाब के पास काम ही काम है....अब भाईसाब मुझे ढूंढ रहे हैं....जिसने उनकी ये वाली नौकरी लगवाई है....