कचौड़ी पर चटपटा चटपटा निबंध : देश की एकता और अखंडता की सहायक

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1. कोई इस पृथ्वी पर जन्में और बिना कचौड़ी खाए मर जाए ये तो हो ही नहीं सकता।
 
2. आटे से निर्मित सुनहरी तली हुई कवर के साथ भरे मसालेदार दुष्ट दाल का दल है ये। जो सदियों से नशे की तरह दिल दिमाग पर हावी बनी हुआ है।
 
3. हमारा राष्ट्रीय भोजन है ये। सुबह नाश्ते मे कचौड़ी हों, दोपहर में भूख लगने पर मिल जाए ये या शाम को चाय के साथ ही इनके दर्शन हो जाए, किसी की मजाल नहीं जो इन्हें ना कह दें।
 
4. कचौड़ी का भूख से कोई लेना देना नहीं होता। पेट भरा है, ये नियम कचौड़ी पर लागू नही होता। कचौड़ी सामने हों तो दिमाग काम करना बंद कर देता है। दिल मर मिटता है कचौड़ी पर। ये बेबस कर देता है आपको। कचौड़ी को कोई बंदा ना कह दे ऐसे किसी शख्स से मैं अब तक मिला नही हूँ।
 
5. कचौड़ी में बड़ी एकता होती है। इनमें से कोई अकेले आपके पेट मे जाने को तैयार नहीं होती। आप पहली कचौड़ी खाते हैं तो आँखें दूसरी कचौड़ी को तकने लगती है, तीसरी आपके दिमाग पर कब्जा कर लेती है और दिल की सवारी कर रही चौथी कचौड़ी की बात आप टाल नही पाते।
 
6. कचौड़ी को देखते ही आपकी समझदारी घास चरने चली जाती हैं। आप अपने डॉक्टर की सारी सलाह, अपने कोलेस्ट्राल की खतरनाक रिपोर्ट भूल जाते हैं। पूरी दुनिया पीछे छूट जाती है आपके और आप कचौड़ी के पीछे होते हैं।
 
7. कचौड़ी को गरम गरम बनते देखना तो और भी खतरनाक है। आप कहीं भी कितने जरूरी काम से जा रहे हो, सड़क किनारे किसी दुकान की कढाई में गरम गरम तेल मे छनछनाती, झूमती सुनहरी कचौड़ी आपके पाँव रोक ही लेंगे। ये जादूगर होता हैं। आप को सम्मोहित कर लेता हैं ये। आप दुनिया जहान को भूल जाते हैं। आप खुद-ब-खुद खिंचे चले आते है कचौड़ी की दुकान की तरफ, और तब तक खडे रहते हैं जब तक दुकानदार दया करके आपको कचौड़ी की प्लेट ना थमा दें।
 
8. किसी मशहूर कचौड़ी  दुकान को ध्यान से देखिये, यहाँ जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, अमीरी, गरीबी का कोई भेद नहीं होता। कचौड़ी से प्यार करने वाले एक साथ धीरज से अपनी बारी का इंतजार करते हैं। जिन बातों ने हमारे देश की एकता अखंडता बनाए रखने में मदद की है उनमें कचौड़ी को बाइज्जत शामिल किया ही जाना चाहिए !

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