Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

Hindi Diwas: हिन्दी गंगा की तरह है जिसमें हमारी संस्कृति बसती है

हमें फॉलो करें Hindi Diwas 2023
Hindi Diwas 2023
-गरिमा मुद्गल

हिन्दी दिवस के अवसर पर वेबदुनिया ने मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ विकास दवे से विशेष बातचीत की। इस पॉडकास्ट में डॉ विकास दवे ने हिन्दी भाषा से जुड़े कई बिन्दुओं पर अपने विचार व्यक्त किए। आज हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में हो रहे लेखन, हिन्दी को रोज़गार की भाषा बनाने और विश्व में हिन्दी भाषा को लेकर आए सकारात्मक बदलाव जैसे विषयों पर उन्होंने अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही नई शिक्षा नीति को लेकर भी उन्होंने अपने विचार रखे। आप यह पॉडकास्ट वेबदुनिया के यूट्यूब चैनल पर भी देख सकते हैं जिसकी लिंक नीचे दी गई है। 
गरिमा मुद्गल: आज के समय में हिन्दी में जो लेखन हो रहा है उसके बारे में आपके क्या विचार हैं?
डॉ विकास दवे: इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आज हिन्दी के प्रति आकर्षण बढ़ा है। विशेषकर साहित्य के क्षेत्र में सृजन धर्मियों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है। इससे हिन्दी के प्रति समाज में आकर्षण और सम्मान का भाव बढ़ रहा है। विशेष कर नई पीढ़ी बहुत अच्छा लिख रही है।

गरिमा मुद्गल: फ़र्राटेदार अंग्रेजी बोलने को शान समझना और हिन्दी में बात करने में हीनता अनुभव करना, क्या यह वैचारिक जड़ता का प्रतीक है?
डॉ विकास दवे: अंग्रेज़ी बोलने को प्रतिष्ठा का विषय हमने ही बनाया है। आज भी विश्व भर में अंग्रेजी बोलने वालों का प्रतिशत बहुत कम ही है। आज विश्व के कई विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ना-लिखना सिखाया जा रहा है। बावजूद इसके भारतीय लोगों में हिन्दी के प्रति हीनता ग्रंथि विकसित हो गई है। इसे ही मानसिक परतंत्रता कहते हैं। इससे मुक्त होने की आवश्यकता है।  

गरिमा मुद्गल: हमारे अपने देश भारत में ही हिन्दी माध्यम से पढ़े लोगों का वेतन अंग्रेज़ी माध्यम के मुक़ाबले काफ़ी कम होता है। ऐसे में हिन्दी को प्रोत्साहन कैसे मिलेगा?
डॉ विकास दवे: इस बात में कोई दो राय नहीं है कि आज हमारे अपने देश में कई ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ रोज़गार के परिपेक्ष में हिन्दी उपेक्षित है। लेकिन इसके लिए भी हम स्वयं ही ज़िम्मेदार हैं। यदि हम कोई पुरानी फिल्म उठा कर देखें जिसमें हीरो हिन्दी के शिक्षक की भूमिका में है। उसे गंभीरता से ना लेते हुए हँसी का पात्र समझा जाता था। अपनी भाषा को सम्मान की जगह हँसी-मज़ाक में देखना मानसिक परतंत्रता ही है। आने वाले समय में एक और मानसिक परतंत्रता का ख़तरा हमारी युवा पीढ़ी को है। आज मोबाइल युग में हिन्दी को भी अंग्रेजी में लिखा जा रहा है। यह हमारी ऊर्जा और मानस का दोहरा उपयोग है। हमें हिन्दी के लिए सकारात्मक माहौल तैयार करना होगा। हालाँकि रोज़गार के कई क्षेत्रों में हिन्दी का दखल बढ़ रहा है लेकिन इस दिशा में और काम करने की ज़रूरत है।

गरिमा मुद्गल: आज कल भारतीय घरों में हिन्दी को भूल कर अग्रेज़ी को बोलचाल की भाषा बनाया जा रहा है। ऐसे में क्या अपने देश भारत में ही हिन्दी अजनबी नहीं हो जाएगी?
डॉ विकास दवे: हिन्दी भाषा का सीधा संबंध हमारी संस्कृति और सभ्यता से है। हिन्दी गंगा के समान है जिसमें हमारे संस्कार बसते हैं। इसलिए बहुत जरूरी है कि हम अपने घरों में हिन्दी बोलने का वातावरण बनाए रखें और कार्यालयों में भी हिन्दी को बोलचाल की भाषा के रूप में अपनाएँ। विश्व के कई देश में बातचीत और कामकाज की भाषा वहाँ की मातृभाषा ही है। हमें भी हिन्दी के प्रति वही मानस रखना चाहिए। यहाँ बहुत महत्वपूर्ण भूमिका शिक्षा जगत की भी है। हमें यह समझना होगा कि शिक्षण में माध्यम और भाषा ज्ञान दोनों को अलग-अलग महत्व दिया जाना चाहिए। 

गरिमा मुद्गल: नई शिक्षा नीति के विषय में आप क्या सोचते हैं?
डॉ विकास दवे: नई शिक्षा नीति के प्रति मैं बहुत आशान्वित हूँ। नई शिक्षा नीति के गठन के समय मैंने बाल साहित्य और बाल मनोविज्ञान विषय पर अपनी ओर से कई सुझाव भेजे थे जिनमें से अधिकतर शामिल किए गए हैं। यह मेरे लिए गौरव की बात है। नई शिक्षा नीति में हम अपनी बोलियों को साथ लेकर अपने बच्चों को शिक्षित कर पाएंगे। अपने विषयों को अपनी भाषा में पढ़ने से हमारे बच्चों की ऊर्जा का  दोगुना उपयोग होगा। आज पूरा विश्व भारतीय मेधा का लोहा मानता है। आने वाले समय में भी भारत विश्व पटल पर कीर्तिमान रचेगा और इसमें हमारी भाषा बड़ी भूमिका निभाएगी।

गरिमा मुद्गल: इस साल वेबदुनिया अपने सफल पच्चीसवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इस अवसर पर आप क्या कहना चाहेंगे?
डॉ विकास दवे: पच्चीस वर्ष किसी भी संस्था के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है और यह समय और भी खास तब हो जाता है जब आप लगातार बेहतर काम कर रहे हों। हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार में वेबदुनिया का योगदान सराहनीय और अभूतपूर्व है। वेवदुनिया हिन्दी के क्षेत्र में अग्रदूत की भूमिका में रहा है। आज भारतीय भाषाओं का गौरव पुनर्स्थापित करने की बात की जा रही है और यह बहुत हर्ष का विषय है कि वेबदुनिया बहुत लंबे समय से यह काम सफलतापूर्वक कर रहा है। वेब दुनिया ने हिन्दी भाषा और जानने वालों को एक मंच पर जोड़ने का जो काम किया है वह निश्चित ही प्रशंसनीय है।
ALSO READ: 14 सितंबर, हिंदी दिवस पर विशेष : हिंदी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

14 सितंबर, हिंदी दिवस पर विशेष : हिंदी के बिना हिन्दुस्तान अधूरा है