Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

मत बोलो हिन्‍दी

हमें फॉलो करें मत बोलो हिन्‍दी

नूपुर दीक्षित

Shruti AgrawalWD
‘हमारे स्‍कूल में हिन्‍दी बोलना मना है। इसलिए आजकल मैं हमेशा अँग्रेजी में ही बात करती हूँ। अगर बोलने की प्रैक्टिस छूट गई तो फिर स्‍कूल में परेशानी आ जाएगी

घर के पड़ोस में रहने वाली मानसी ने जब अँग्रेजी बोलने का कारण बताया, तो उसका तर्क सुनकर मैं हैरान रह गई। मुझे हैरानी इस बात पर नहीं थी कि वो स्‍कूल में अँग्रेजी बोलने के लिए दिनभर अँग्रेजी में बात करने का अभ्‍यास करती है बल्कि हैरानी इस बात पर थी कि विद्यालय किसी भाषा विशेष को अनिवार्य कर बच्‍चों को क्‍या सिखाना चाहते है?

भाषा अभिव्‍यक्ति का माध्‍यम है, अपने विचारों को व्‍यक्‍त करने के लिए हम किस भाषा का उपयोग करते है, यह हमारी व्‍यक्तिगत पसंद और राय पर निर्भर करता है। किसी छात्र को भाषाज्ञान देने की, उसकी भाषा को सुधारने की जिम्‍मेदारी स्‍कूलों की होती है। इस जिम्‍मेदारी के बदले किसी स्‍कूल को अपने विद्यार्थियों पर भाषा विशेष को थोपने का अधिकार नहीं मिलना चाहिए।

‘अधिका’ शब्‍द को हम कुछ देर के लिए भूल भी जाए तब भी क्‍या अपनी मातृभाषा और राष्‍ट्रभाषा के प्रति स्‍कूलों की कोई जिम्‍मेदारी नहीं बनती। यदि कच्‍ची उम्र से ही बच्‍चे अपनी मातृभाषा से दूर होने लगे तो परिपक्‍व होने के बाद क्‍या उस भाषा के साहित्‍य को पढ़ने और उस भाषा में कुछ नया रचने की ललक उनमें होगी? क्‍या वे खुद उनकी आने वाली पीढ़ी में अपनी मातृभाषा के प्रति प्रेम और सम्‍मान के भाव जगा पाएँगे?

इन सवालों का जवाब स्‍पष्‍ट है। भाषा सतत् प्रवाहमान होती है। हमारी हिन्‍दी का प्रवाह बना रहे इसके लिए जरूरी है कि हिन्‍दी उम्रदराजों के दायरे से बाहर निकलकर नौनिहालों की भाषा बने। ताकि ये नौनिहाल जब वयस्‍क नागरिक बनने की ओर बढ़े तो इन्‍हे अपनी ही भाषा अजनबी ना लगे। अपनी ही भाषा इन्‍हें असहज ना लगे और अपनी ही भाषा बोलने में इन्‍हे शर्म ना महसूस हो।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi