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इंटरनेट पर हिन्दी का प्रवेश

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इंटरनेट के आगमन के बाद से ही भारतजनों की अपनी भाषा हिन्दी को इसपर स्थान दिलाने के लिए प्रयास शुरू हो गए थे। चूँकि हिन्दी की अपनी स्वयं की एक लिपि है जो रोमन से बिल्कुल अलग है, इसलिए वेब पर हिन्दी के पृष्ठों को दिखाना आसान काम नहीं था।

लोगों के सामने अपनी बा‍त को अपनी भाषा में लिखने के लिए तकनीकी दुविधा थी। ऐसे में रोमन लिपि सखी बनी और रोमन हिन्दी भाषा को इंटरनेट के मंच पर ले आई। रोमन लिपि में भाषा के भाव तो आ गए लेकिन सुगंध नहीं आ सकी। भारत के तकनीकी मानस ने हिन्दी भाषा सामग्री की इमेज फ़ाइल बनाकर वेबसाइटों पर लगाना शुरू किया और इस तरह से पहली बार इंटरनेट के पन्नों पर हिन्दी दिखाई दी।

हिन्दी की उपस्थिति बढ़ने लगी। कभी छोटे-छोटे नारे, तो कभी मधुर-मोहक संदेश, कभी कोई विज्ञापन तो कभी सिर्फ नाम और पते के रूप में कभी गुदगुदाते चुटकुले तो कभी रोमांटिक शायरी। इसे इंटरनेट पर हिन्दी का शैशवकाल भी कहा जा सकता है। 
 
लेकिन इंटरनेट पर भाषा सामग्री को इस रूप में प्रस्तुत करने में अत्यधिक समय लगता था और वह रुचिकर भी नहीं था। साथ ही बाद में संशोधन की कोई गुंजाइश न थी।
 
हिन्दी के इस अधूरे प्रस्तुतिकरण से भूख और बढ़ी...बेहतरी के प्रयासों ने ज़ोर पकड़ा।

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