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1232 किमी: कोरोना काल में एक असंभव सफर

हमें फॉलो करें 1232 किमी: कोरोना काल में एक असंभव सफर
, मंगलवार, 21 सितम्बर 2021 (15:26 IST)
कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान मजदूर, बेरोजगार और बेसहारा लोगों की त्रासदी को बयां करती यह किताब राजकमल से प्रकाशि‍त हुई है। इसमें सा दिन, सात रातें और सात प्रवासियों के पलायन की कहानी है। किताब के लेखक विनोद कापड़ी हैं।

दरअसल, कोरोना के कारण 2020 में घोषित लॉकडाउन ने करोड़ों भारतीयों को अकल्पनीय त्रासदी का सामना करने के लिए विवश कर दिया। नगरों-महानगरों में कल-कारखानों पर ताले लटक गए, काम-धन्धे रुक गए और दर-दुकानें बन्द हो गईं। इससे मजदूर एक झटके में बेरोजगार, बेसहारा हो गए।

मजबूरन उन्हें अपने गांवों का रुख करना पड़ा। उनका यह पलायन भारतीय जनजीवन का ऐसा भीषण दृश्य था, जैसा देश-विभाजन के समय भी शायद नहीं देखा गया था। लॉकडाउन के कारण आवागमन के रेल और बस जैसे साधन बन्द थे, इसलिए अधिकतर मजदूरों को अपने गांव जाने के लिए डेढ़-दो हजार किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ी। कुछेक ही ऐसे थे जो इस सफर के लिए साइकिल जुटा पाए थे।

1232km: कोरोना काल में एक असम्भव सफ़र’ ऐसे ही सात प्रवासी मजदूरों की गांव वापसी का आंखों देखा वृत्तान्त है। उन्होंने दिल्ली से सटे गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) से अपना सफ़र शुरू किया, जहां से सहरसा (बिहार) स्थित उनका गांव 1232 किलोमीटर दूर था।

उनके पास साइकिलें थीं, लेकिन उनका सफ़र कतई आसान नहीं था। पुलिस की पिटाई और अपमान ही नहीं, भय, थकान और भूख ने भी उनका कदम-कदम पर इम्तिहान लिया। फिर भी वे अपने मकसद में कामयाब रहे।

यह किताब सात साधारण लोगों के असाधारण जज़्बे की कहानी है, जो हमें उन कठिनाइयों, उपेक्षाओं और लाचारी से भी रू-ब-रू करती है, जिनका सामना भारत के करोड़ों-करोड़ लोगों को रोज करना पड़ता है।

कोरोना महामारी के चलते 2020 में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान, घर लौटने के लिए 1232 किमी का सफ़र सात मजदूरों ने साइकिल से तय किया। पत्रकार-फ़िल्मकार और लेखक विनोद कापड़ी इस दौरान उनके साथ रहे। इस विकट सफ़र का आंखों-देखा हाल है यह किताब 1232km : कोरोना काल में एक सम्भव सफ़र

यह आपबीती डिज्नी हॉटस्टार पर 1232km नाम से बहुचर्चित फ़िल्म है। इसका पुस्तकाकार प्रकाशन अंग्रेज़ी में भी हुआ है और जल्द ही मराठी, तमिल, तेलुगु में भी होने जा रहा है।
 
किताब: 1232km : कोरोना काल में एक असम्भव सफ़र
प्रकाशन: राजक‍मल
लेखक: विनोद कापड़ी
कीमत: 199 पैपरबेक

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