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गांधी से मोदी तक : भारत पर पश्चिमी मीडिया के रवैये का पोस्‍टमार्टम है यह किताब

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वेबदुनिया न्यूज डेस्क

, शनिवार, 20 अप्रैल 2024 (19:19 IST)
उमेश उपाध्‍याय एक बेहद अनुभवी पत्रकार और गंभीर लेखक हैं। उनकी हालिया प्रकाशित किताब Western Media Narratives on India: From Gandhi to Modi ने पश्‍चिमी मीडिया के उस विचार पर न सिर्फ बहुत गहराई से रोशनी डाली है, बल्‍कि चुनौती भी दी है जो भारत का अपने हिसाब से चित्रण करता है। उमेश उपाध्याय ने न सिर्फ पश्चिमी मीडिया के पक्षपाती रवैये का पोस्‍टमार्टम किया है, बल्‍कि उसके एजेंडे की पड़ताल कर उसे दुनिया के सामने उजागर भी किया है।

भारत को लेकर पश्चिमी मीडिया द्वारा किए गए पूर्वाग्रह वाले कवरेज की सचाई बताते हुए यह किताब पश्चिमी मीडिया के मिथक को भी ध्वस्त करती है।

उपाध्याय ने अपनी किताब में तर्क दिया है कि पश्‍चिमी मीडिया के तौर तरीके किस तरह से राजनीति से प्रेरित हैं और कैसे वे राजनीतिक एजेंडे के फ्रेमवर्क के भीतर काम करते हुए कुछ खास हित और उदेश्‍यों की पूर्ति करते हैं। एक तरह से किताब अपने तर्कों से उनके राजनीतिक उदेश्‍यों को उजागर करती है।

केस स्टडी: पश्‍चिमी मीडिया के कोविड-19 मीडिया कवरेज की बात करें तो उपाध्याय इस कवरेज के पीछे छिपे हुए एजेंडे जीओ-पोलिटिकल मकसद को उजागर करते हैं। उनका तर्क है कि रिपोर्ट तैयार नहीं की जाती, बल्‍कि अक्सर भारत के खिलाफ नकारात्मक पूर्वाग्रहों के साथ कहानियां गढ़ी जाती हैं।

इसके लिए वे न्यूयॉर्क टाइम्स की दहशत फैलाने वाली सुर्खियों और गार्जियन में प्रकाशित आलोचनाओं के उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि कैसे भारत के व्‍यापक भोजन वितरण और वैक्‍सीन सिस्‍टम को इग्‍नौर किया गया।

अफवाहें कैसे आग की तरह फैलती हैं : किताब बताती है कि कैसे झूठी अफवाहें जंगल में आग की तरह फैल जाती हैं और उन्‍हें सच मान लिया जाता है। इसके लिए उपाध्याय महात्मा गांधी और स्पैनिश फ़्लू का एक उदाहरण देते हैं। वे लिखते हैं कि एक ब्रिटिश पत्रकार यह दावा कर देता है कि महात्‍मा गांधी को स्पैनिश फ़्लू हुआ है। यह खबर प्रकाशित की गई और पूरी दुनिया में यह गलत सूचना मीडिया की संवेदनशीलता पर सवाल खड़ा करती है।

झूठी रिपोर्ट के खतरें: उपाध्‍याय अपनी किताब में लिखते हैं कि कैसे गलत सूचनाओं से भरी रिपोर्ट अचानक पसरती हैं, और कैसे कई मीडिया हाउसेस उसे बढ़ावा देते हैं, जिससे वैश्‍विक स्‍तर पर एक अवधारणा बन जाती है। इसके अलावा, वे संदिग्ध रिपोर्टिंग के उदाहरणों को भी उजागर करते हैं, जैसे कि ‘नकली टीकों’ पर बीबीसी की रिपोर्ट जिसमें भारत के खिलाफ सनसनीखेज आरोप लगाए गए हैं। जबकि दूसरे देशों के ऐसे मुद्दों से मुंह मोड़ लिया जाता है।

निशाने पर भारत ही क्‍यों : उमेश उपाध्याय इस बात पर जोर देते हैं कि पश्चिमी मीडिया भारतीय नेतृत्व के आधार पर भेदभाव नहीं करता है। वे कहते हैं कि चाहे गांधी हों, मोदी हों या कोई और नेता, निशाने पर भारत ही रहता है। नरैटिव कोई भी हो सकता है, किसी भी रूप में हो सकता है। चाहे कोई एनजीओ हो या यूनिवर्सिटी पश्‍चिमी मीडिया इनका सहारा लेकर भारत के खिलाफ ज्‍यादा से ज्‍यादा असर बनाना चाहता नजर आता है।

इंडिया फर्स्ट की वकालत : यह पुस्तक पक्षपातपूर्ण राजनीति से ऊपर है। यह भारत के ‘इंडिया फर्स्ट’ दृष्टिकोण की वकालत करती है। किताब के लेखक उमेश उपाध्याय एम. वेंकैया नायडू की प्रस्तावना का हवाला देते हैं और कहते हैं कि बहुत अच्‍छा होगा अगर भारतीय मीडिया द्वारा राष्ट्रीय हित की खबरों व लेखों को प्राथमिकता दी जाए।

हैडलाइंस के पीछे का एजेंडा समझे : यह किताब पाठक को मीडिया द्वारा किए जा रहे कवरेज को लेकर जागरूकता के लिए प्रेरित करती है। लेखक चाहते हैं कि पाठक ऐसे कवरेज पर आलोचनात्‍मक नजर डालें, फैक्‍ट चेक करें और सनसनीखेज हैडलाइंस के पीछे का एजेंडा समझने की कोशिश करे।

क्‍यों पढ़ना चाहिए ये किताब : यह किताब भारत की छवि और मीडिया की भूमिका को समझने और इनसे सरोकार रखने वालों के लिए बेहद जरूरी है। लेखक उमेश उपाध्‍याय की किताब के लिए की गई रिसर्च न सिर्फ पत्रकारिका के स्‍टूडेंट बल्‍कि राजनीति विज्ञान और अंतरराष्‍ट्रीय मामलों को जानने समझने वालों के लिए बेहद जरूरी दस्‍तावेज है।

वेकअप कॉल है किताब : यह किताब एक तरह से हम सभी के लिए एक ‘वेकअप कॉल’ है। लेखक इसके पाठक को इस बात के लिए प्रेरित करते हैं कि नरैटिव पर सवाल उठाए जाएं और पूरी तरह से पश्‍चिमी मीडिया पर आंख बंदकर के भरोसा न करें। अंत में किताब यह चाहती है कि भारत का अपना एक मजबूत मीडिया हो जो बेहद प्रभावी तरीके से दुनिया को अपनी असल कहानी कह सके।

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