उमाशंकर मिश्र
(इंडिया साइंस वायर) : प्रदूषण नियंत्रण के लिए वाहनों में कम्प्रेस्ड नेचुरल गैस (सीएनजी) के बढ़ते उपयोग के साथ-साथ इससे जुड़े दुष्प्रभावों को लेकर भी सवाल उठते रहे हैं। अब भारतीय शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में सीएनजी को डीजल और पेट्रोल की तुलना में अधिक स्वच्छ एवं सुरक्षित ईंधन बताया गया है।
सीएनजी, डीजल एवं पेट्रोल जैसे ईंधनों के उपयोग से वाहनों से होने वाले उत्सर्जन के विभिन्न रूपों की अनुरूपता का परीक्षण करने के बाद भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर की इंजन रिसर्च लेबोरेटरी के शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। अध्ययन के दौरान अलग-अलग तरह के ईंधनों के उपयोग से होने वाले उत्सर्जन के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव का पता लगाने के लिए विभिन्न इंजनों से उत्सर्जित होने वाले सूक्ष्म कणों का परीक्षण मानव कोशिकाओं पर किया गया है।
अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर अविनाश अग्रवाल के अनुसार “सीएनजी इंजन से निकलने वाले कणों का लोवर सरफेस एरिया डीजल एवं पेट्रोल इंजन से निकलने वाले कणों की अपेक्षा कम होता है, जिसके कारण विषाक्तता कम होती है। इसके साथ ही सीएनजी इंजन से निकलने वाले कण अन्य ईंधनों की तुलना में कम पीएच अवशोषण करते हैं। सीएनजी इंजन की तुलना में डीजल इंजन से 30-50 गुना सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन होता है, जो मनुष्य के फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है।”
इस अध्ययन में जिन वाहन इंजनों को शामिल किया गया है उनका उपयोग दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले वाहनों में काफी समय से किया जा रहा है। इनमें बीएस-2, बीएस-3 और बीएस-4 जैसे विभिन्न इंजन शामिल हैं, जिनमें अलग-अलग ईंधनों पेट्रोल, डीजल एवं सीएनजी का उपयोग किया जाता है। शोधकर्ताओं ने इन इंजनों का परीक्षण किया है और इनसे उत्सर्जित होने वाले कणों को एकत्रित करके उनका भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विषाक्तता का विश्लेषण किया है।
अध्ययनकर्ताओं के अनुसार, डीजल एवं पेट्रोल इंजन से निकलने वाले कणों से मनुष्य के डीएनए में परिवर्तन की संभावना रहती है, जबकि सीएनजी इंजन से निकलने वाले कणों से यह खतरा कम हो जाता है। इस अध्ययन के नतीजे सीएनजी के उपयोग के संबंध में नीति निर्धारण में मददगार हो सकते हैं।
वाहनों से निकलने वाले सूक्ष्म कणों पर तो काफी शोध हुए हुए हैं, पर इन कणों के कारण स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों के बीच संबंध के बारे में अभी अधिक जानकारी नहीं है। इस लिहाज से यह अध्ययन महत्वपूर्ण हो सकता है। दिल्ली जैसे शहरों में जहां वाहनों में सीएनजी का उपयोग हो रहा है, वहां सूक्ष्म कणों के घनत्व में बढ़ोत्तरी खतरनाक हो सकती है।
अध्ययनकर्ताओं में प्रोफेसर अग्रवाल के अलावा प्रोफेसर तरुण गुप्ता, प्रोफेसर बुसरा अतीक, अखिलेंद्र प्रताप सिंह, स्वरूप के. पांडेय, निखिल शर्मा, रश्मि अग्रवाल, नीरज गुप्ता, हेमंत शर्मा, आयुष जैन और प्रवेश सी. शुक्ला शामिल थे। यह अध्ययन शोध पत्रिका एन्वायरमेंटल पाल्यूशन में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)