कोरोना संक्रमण के बाद लोगों को कई तरह की बीमारियां होने का अंदेशा जताया जाता रहा है। लेकिन अब नई रिसर्च में सामने आया है कि कोरोना वायरस पैंक्रियाज के सेल के काम को बदलता है। जब कोरोना सेल्स को संक्रमित करता है, तो न ये सिर्फ उनकी गतिविधि को खराब करता है बल्कि उनके कामकाज में भी बदलाव ला सकता है।
कोविड-19 पैंक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाली सेल्स को प्रभावित और सेल्स के कामकाज को बदल सकती है, इससे संभावित तौर पर पता चलता है कि पहले सेहतमंद लोग कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद डायबिटीज रोगी क्यों बन जाते हैं।
डॉक्टर कोरोना संक्रमण से या उससे ठीक होने के बाद डायबिटीज रोगी बनने वाले मरीजों की बढ़ती हुई संख्या पर टेंशन में हैं।
इसे और बेहतर तरीके से समझने के लिए कई तरह की थ्योरी दी गई। एक ये है कि वायरस पैंक्रियाज की सेल्स उसी ACE2 रेसेप्टर के जरिए प्रभावित करता है, जो लंग के सेल्स पर पाया जाता है और इस तरह इंसुलिन पैदा करने की क्षमता में रुकावट पैदा करता है। इंसुलिन ऐसा हार्मोन है जो ब्लड में मौजूद ग्लूकोज लेवल को नियंत्रित करने में शरीर की मदद करता है।
दूसरा सिद्धांत ये था कि वायरस के खिलाफ जरूरत से ज्यादा एंटीबटजी रिस्पॉन्स पैन्क्रियाज की सेल्स को गलती से नुकसान पहुंचा सकता है, या शरीर में सूजन के कारण टिश्यू की इंसुलिन के खिलाफ रिस्पॉन्स की क्षमता प्रभावित होती है। न्यूयॉर्क में वेल कॉर्नेल मेडिसीन के विशेषज्ञों ने लैब में विकसित कई सेल्स की स्क्रीनिंग की ये पहचान करने के लिए कौन कोरोना से संक्रमित हो सकता है।
नतीजे से पता चला कि लंग, कोलेन, हार्ट, लिवर और पैंक्रियाज के सेल्स वायरस से संक्रमित हो सकते हैं, उसी तरह डोपामाइन बनाने वाले दिमाग के सेल्स भी। आगे के प्रयोग खुलासा हुआ कि पैंक्रियाज में इंसुलिन बनाने वाले बीटा सेल्स को भी बीमारी का खतरा है और एक बार संक्रमित होने पर ये सेल्स कम इंसुलिन पैदा करते हैं। वैज्ञानिकों ने टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित कुछ मरीजों में समान ट्रेंड को देखा, हालांकि बीमारी इंसुलिन के खिलाफ शरीर के टिश्यू का कम प्रभावी होने से अधिक जुड़ता है।
लेकिन ये स्पष्ट नहीं कि क्या कोरोना संक्रमण से आने वाले बदलाव लंबे समय तक रहने वाले हैं। उन्होंने कहा कि आईसीयू में इलाजरत कोरोना के कुछ मरीजों का ब्लड ग्लूकोज लेवल बीमारी से ठीक होने के बाद बहुत अस्थिर हो गया था, उनमें से कुछ का ग्लकूोज कंट्रोल भी ठीक हो गया, इससे ये संकेत मिलता है कि सभी मरीजों में ये समस्या स्थायी नहीं होगी।