प्रस्तुति : निवेदिता भारती
होली का मजा रंगों के बिना अधूरा है। लेकिन रंगों से मिलने वाला मजा कहीं बाद में सजा न बन जाए। आजकल बाजार में सिंथेटिक रंगों की भरमार है जो नुकसानदायक केमिकल्स से तैयार किए जाते हैं। इनमें कांच का चूरा और अल्केलाइन का भी इस्तेमाल किया जाता है। त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार होली के दौरान त्वचा को होने वाले नुकसान से बचाने का केवल एक ही तरीका है वह है प्राकृतिक रंगों से उत्सव को मनाएं।
होली के कई दिनों पहले से बाजार पैकबंद और खुले रंगों से भर जाता है। यह रंग केमिकल्स और धूल के साथ अन्य गंदगी से भरे हुए होते हैं और स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होते हैं। इन रंगों में कई प्रकार की मिलावट की जाती है जैसे क्रोमियम, सिलिका, लेड और अल्कालाइन। पिछले कुछ सालों में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं जिनमें रंगों में कांच का चूरा पाए गए।
होली के दिन ज्यादातर लोग ऐसे रंगों का इस्तेमाल करना चाहते हैं जो बहुत ज्यादा गहरे हों और आसानी से न निकले। इस चाह ने बाजार को ऐसे केमिकल और ऑक्सीडाइस्ड से बने हुए रंगों से भर दिया जिनका स्वास्थ्य पर बहुत विपरीत प्रभाव पड़ता है। इन रंगों से त्वचा रोग, आंखों में इंफेक्शन, अल्पकालीन अंधत्व, दमा और त्वचा कैंसर जैसे रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। कुछ रंगों के बुरे असर रंग लगने के 24 घंटे के बाद शुरु होते हैं इनमें खुजली व सूजन जैसे लक्षण उभर आते हैं। इन रंगों के आंखों पर पड़ने वाले प्रभाव बहुत भयानक होते हैं जिनमें कॉर्नियल अल्सर, कंजेक्टिवाइटिस और एलर्जी शामिल है। इस दौरान पड़ने वाली पस से हमेशा के लिए आंखों की रोशनी जा सकती है।
आइए जानते हैं कि कौन सा रंग किन केमिकलों से बना है और उनका शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है साथ ही साथ उन्हीं रंगों को प्राकृतिक रुप में कैसे पाया जा सकता है।
हरा : हरा रंग कॉपर सल्फ़ेट से बनाया जाता है और इसके आंख में चले जाने से आंखों में एलर्जी हो सकती है। हरा रंग प्राकृतिक तौर पर मेहंदी, धनिया पाउडर से और गुलमोहर की सुखी पत्तियों से पाया जा सकता है जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरण को सुरक्षित रखना बेहद आसान है।
बैगंनी : क्रोमियम आयोडाइड से बैगंनी रंग बनाया जाता है। इससे अस्थमा या एलर्जी हो सकती है।
सिल्वर : सिल्वर रंग एल्युमिनियम ब्रोमाइड जो कि एक कारसिनोजेनिक होता है। कारसिनोजेनिक को कैंसर पैदा करने वाले तत्व के रूप में जाना जाता है।
काला : लेड ऑक्साइड से काला रंग बनाया जाता है। इस तत्व से किडनी काम करना बंद कर सकती है और दिमाग की सीखने की क्षमता प्रभावित होती है। काला रंग प्राकृतिक तौर पर आंवला के पानी से बनाया जा सकता है।
लाल : लाल रंग मरक्यूरी सल्फेट से बनता है और इससे त्वचा कैंसर के अलावा लकवा और दृष्टिदोष हो सकते हैं। लाल और नारंगी रंग पाने के लिए पलाश या टेशु के फूलों का उपयोग किया जा सकता है। इन फूलों को सुखाकर हल्दी के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से नारंगी रंग प्राप्त किया जा सकता है। चुकंदर में लाल रंग भरपूर होता है। अगर आप तरल रंग का इस्तेमाल करना चाहते हैं तो चुकंदर एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है।
शाइनी : रंग जिनमें चमक दिखाई देती है कांच को पाउडर करके उनमें मिलाया जाता है।
प्रकृति कई तरह के रंगों से भरी है और सुरक्षित होली के लिए अपने आसपास आप ऐसी बहुत सी चीजे पाएंगे जिससे आपका मजा भी दुगुना हो जाएगा और स्वास्थ्य के साथ साथ पर्यावरण को भी हानि नहीं होगी।
होली के समय मौसम में बार बार होने वाले बदलावों से बुखार और सर्दी होना आम बात होती है। होली पर डाले जाने वाले रंगों का खास महत्व है अगर रंग नीम, कुमकुम, हल्दी, बिल्व और अन्य प्राकृतिक चीजों से बना हो। इस तरह के रंग स्वास्थ्य को सुधारते हैं।
पीला : हल्दी प्राकृतिक तौर पर पीला रंग पाने का साधन है। इसके साथ बेसन को मिलाकर अलग रंग तैयार किया जा सकता है।
ब्राउन : चाय की सुखी पत्तियों से ब्राउन रंग तैयार किया जा सकता है साथ ही साथ कॉफी पाउडर को भी ब्राउन रंग के लिए उपयोग किया जा सकता है।