जवानी में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण, विवाह के बाद पति-पत्नी के बीच का प्यार और मां की ममता व बच्चे के बीच का जुड़ाव दरअसल और कुछ नहीं, शरीर से निकलती खास देहगंध कमाल है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि प्यार की बढ़ती पींगों में दिल कहीं नहीं आता, यह तो सिर्फ शरीर से निकलते खास केमिकल्स का खेल है, जो प्यार के बीजों को सींचते हैं और एक दिन ये बीज प्याररूपी पौधे में विकसित हो जाते हैं।
अमेरिका के पश्चिमी भाग में चूहों की 'प्रेयरी बोल' नामक एक प्रजाति पाई जाती है। यह अलग किस्म का चूहा है। घरेलू चूहों से यह न केवल रंगरूप और आकार में अलग है बल्कि इसकी आदतें भी अलग हैं। वैज्ञानिकों ने इसको लेकर की गई रिसर्च में पाया कि चूहा प्यार में जल्दी पड़ जाता है। इन प्रयोगों के लिए उन्हें 5 साल का लंबा समय लगा। वैज्ञानिकों ने चूहों को आधार बनाते हुए बताया कि मानवीय प्रेम में भावनात्मक लगाव जैसी कोई बात नहीं है। असल में तो यह सिर्फ केमिकल्स का खेल है।
चूहों पर इन केमिकल्स के टेस्ट के दौरान पाया गया कि जब इस प्रजाति के नर और मादा चूहे कम से कम 12 घंटे धूप में साथ नहीं रह लेते, वे शारीरिक मिलन नहीं करते हैं। यही कारण है कि प्यार की यह बौछार वसंत ऋतु में ही हो पाती है, जब कुनकुनी धूप उन्हें सेंकती है। उनकी चुहलबाजियों को बढ़ाती हैं और एक-दूसरे के शरीर की छुअन शरीर में केमिकल्स का स्राव करती है, तब उनकी प्रेम की कहानी का आगाज होता है।
इस दौरान वैज्ञानिकों ने चूहों के मस्तिष्क मे ऐसे केमिकल्स का पता लगाया, जो शारीरिक मिलन के खास तत्व हैं। वसंत बीतते ही 'प्रेयरी बोल' प्रजाति के नर चूहों में 'फिरोमन' नामक एक तेज गंध वाला केमिकल निकलता है, जो मादा चूहे को अपनी ओर आकर्षित करता है। जब वे एक-दूसरे के साथ रहने लगते हैं तो कुछ समय बाद ही नर चूहों के शरीर में 'टेस्टोस्टेरोन हार्मोन' की बढ़ोतरी हो जाती है, जो उनके शुक्राणुओं को भी बढ़ा देती है।
वसंत ऊर्जा की ऋतु है। ठंड का ठहराव न केवल शारीरिक क्रियाओं को बल्कि सामान्य गति को भी कम कर देता है। वसंत मन को इस हद तक प्रफुल्लित कर देता है कि शादीशुदा जोड़े भी अपने रोमांस में कमनीयता ले आते हैं। सबसे ज्यादा गर्भ की इस ऋतु में ही धारण किए जाते हैं। वसंत ऋतु में स्पर्श शरीर के जर्म्स यानी कीटाणुओं को मौत थमाता है।
मजे की बात यह है कि वैज्ञानिकों ने जब लैबोरेटरी में ही वसंत का कृत्रिम माहौल पैदा किया तो चूहिया खुद ही नर चूहों की ओर लपकने लगी। इससे यह पता चलता है कि वसंत ऋतु मादकता पैदा करती है।
नर की उत्तेजना को नियंत्रित करने में 'नाइट्रिक ऑक्साइड' बहुत प्रभावी है। ये केमिकल्स मष्तिस्क की कार्यप्रणाली को उत्तेजित करने और नियंत्रित करने में न्यूरो ट्रांसमीटर की तरह काम करता है। चूहों पर किए गए प्रयोग में वैज्ञानिकों ने पाया कि जैसे ही 'नाइट्रिक ऑक्साइड' बनाने वाले एंजाइम यानी 'एनओएस' बेकार होते हैं, बेताबी से लिपटे नर-मादा चूहे अलग हो जाते हैं। बस यही महत्वपूर्ण बात थी जिसने न सिर्फ केमिकल्स से उपजे प्रेम की बात साबित की।
अब सिर्फ एक के पीछे की दीवानगी को समझना जरूरी है। असल में एक के पीछे की दीवानगी भी केमिकल का ही खेल है। वैज्ञानिकों ने पाया कि नर चूहों में 'वेसोप्रोसिन' और मादा चूहों में 'ऑक्सीटोसिन हार्मोन' ज्यादा असरकारी होते हैं, जो एक ही के प्रति दीवानगी को जन्म देते हैं।
'वेसोप्रोसिन' इतना प्रभावी नहीं है लेकिन इतना जरूर है कि 'वेसोप्रोसिन' की ज्यादा मात्रा मादा के प्रति लगाव पैदा कर देती है। वह भी इस हद तक कि अगर उसे कोई और छुए तो भी बात मरने-मारने पर आ जाती है। यही है प्रेम की चरम सीमा। यही हाल मादा में 'ऑक्सीटोसिन हार्मोन' की ज्यादा मात्रा पैदा करती है। काश! ये केमिकल्स वहां निकल पाते, जहां नफरत हिलोरे लेती है।
आज फाइव स्टार होटलों की संस्कृति कुछ भी हो, मगर बदले रूप में ही सही यहां वसंतोत्सव मनाया जाता है। गर्मियों-सर्दियों में इंटरनेट पर इतनी चैटिंग नहीं होती जितनी कि वसंत में होती है। असल में शरीर में 'टेस्टोस्टेरोन हार्मोन' सारे फसाद की जड़ है। जब करीबी ज्यादा होती है, तब मष्तिस्क से 'फास' नामक प्रोटीन निकलने लगता है, जो यह संकेत देता है कि स्नायु कोशिकाएं पूरी तरह सक्रिय हैं और प्यार की आग धधक रही है। इसलिए अगर लंबी उम्र पानी है, तो किसी से दीवानेपन की हद तक प्यार कीजिए।
प्यार न केवल आपके अंदर स्फूर्ति पैदा करता है, बल्कि आपकी आंतरिक क्रियाओं को भी बदल देता है जिसे आप शुरू में नहीं चाहते, मगर बाद में बेहद चाहने लगते हैं। इसके पीछे भी प्रेम केमिकल्स का ही स्राव है।
हर किसी के तन में अलग-अलग देहगंध बसी होती है। देहगंध पर वैज्ञानिकों ने रिसर्च की है।
अंतर है देहगंध और पसीने में
पसीने से जहां दुर्गंध आएगी वहीं देहगंध जरा हट के होगी। यह गंध पुरुष और स्त्री दोनों में होती है। मगर स्त्री की गंध का खास महत्व है। यह गंध जवानी में विपरीत सेक्स के आकर्षण का केंद्र बनती है, जो शादी के बाद पति-पत्नी के बीच कड़ी को मजबूत करने में सीमेंट का काम करती है। मां बनने पर यही गंध बच्चे को ममता का पहला पाठ पढ़ाती है।
कुछ समय पहले देहगंध को लेकर कुछ टेस्ट किए गए थे। इसके लिए महिलाओं के ऐसे वर्ग को चुना गया जिनका प्रसव कुछ दिन पहले ही हुआ था। इसमें महिलाओं को पहले नवजात शिशुओं के कपड़े सुंघाए गए। इन कपड़ों में उनके अपने बच्चे का भी कपड़ा था।
एक-एक कर कपड़ों को सूंघती महिलाएं अपने बच्चे के कपड़े पर आकर रुक जाती थीं। हर महिला ने इसे दुनिया की सबसे बेहतरीन गंध बताया। वैज्ञानिकों के अनुसार इस गंध के नथुने में पहुंचते ही महिलाओं को अजब अनुभूति होती है और वे अपने बच्चे को गोद में लेने के लिए मचल उठती है।