Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

हरिद्वार कुंभ मेले में कल्पवास करने के 10 फायदे

हमें फॉलो करें हरिद्वार कुंभ मेले में कल्पवास करने के 10 फायदे

अनिरुद्ध जोशी

कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर निवास कर वेदाध्ययन और ध्यान करना। प्रयाग इलाहाबाद कुम्भ मेले में कल्पवास का अत्यधिक महत्व माना गया है। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कुछ लोग माघ पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं।
 
1. कुंभ नगरियों में कल्पवास का बहुत महत्व है क्योंकि यहां कभी किसी काल में ऋषियों ने घोर तप किया था। तभी से तपोभूमि पर कुंभ और माघ माह में साधुओं सहित गृहस्थों के लिए कल्पवास की परंपरा चली आ रही है, जिसके माध्यम से व्यक्ति धर्म, अध्यात्म और खुद की आत्मा से जुड़ता है।
 
2. ऋषि और मुनियों का तो संपूर्ण वर्ष ही कल्पवास रहता है, लेकिन उन्होंने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा। उनके अनुसार इस दौरान गृहस्थों को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी। इस शिक्षा और दीक्षा से ग्रहस्थों का जीवन सरल बनता है और वे जीवन की हर कठिनाइयों का समाधान खोज पाते हैं।
 
3. इस दौरान जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर आता है ऋषियों की या खुद की बनाई पर्ण कुटी में रहता है। इस दौरान दिन में एक ही बार भोजन किया जाता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभावपूर्ण रहा जाता है। इससे जीवन में अनुशासन और जिम्मेदारी का भाव विकस्ति होता है।
 
4. पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। इससे वह बहुत पुण्य के साथ ही प्रभु की कृपा भी प्राप्त करता है। 
 
5. कल्पवासी के मुख्य कार्य है:- 1.तप, 2.होम और 3.दान। तीनों से ही आत्म विकास होता है। 
 
6. ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है।-मत्स्यपु 106/40 
 
7. यहां झोपड़ियों (पर्ण कुटी) में रहने वालों की दिनचर्या सुबह गंगा-स्नान के बाद संध्यावंदन से प्रारंभ होती है और देर रात तक प्रवचन और भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है। इससे मन और चित्त निर्मल हो जाता है और व्यक्ति के सारे सांसारिक तनाव हट जाते हैं जिसके चलते वह ग्रहस्थी में नए उत्साह के साथ पुन: प्रवेश करता है। 
 
8.ऋषियों और देवताओं का मिलता साथ : इस दौरान साधु संतों के सात ही कहते हैं कि देवी और देवता भी स्नान करने धरती पर आते हैं। हिमालय की कई विभूतियां भी यहां उपस्थिति रहती हैं। ऐसे आध्यात्मि माहौल में रहकर व्यक्ति खुद का धन्य पाता है।
 
9. कल्पवा में नियम से रहता से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। जिसके चलते व्यक्ति लंबी आयु पाता है। 
 
10. माना जाता है कि इस समय गंगा समेत पवित्र नदियों की धारा में अमृत प्रवाहित होता है। इस मौके पर स्नान करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण भी होता है। यह एक प्रकार से कुदरती टीकाकरण है। जो हर तीन साल में लगता है क्योंकि कुंभ चारों नगरी में से कहीं ना कहीं हर तीन साल में आयोजित होता है। माघ माह में आयोजित होने वाला कुंभ बहुत ही महत्व का होता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

Ekadashi 2021 Rules : एकादशी के नियम, जानिए क्या नहीं करना चाहिए इस दिन