BJP ने गुजरात में तोड़ दिए सारे रिकॉर्ड, हिमाचल में करीबी लड़ाई में कांग्रेस ने हराया

Webdunia
गुरुवार, 8 दिसंबर 2022 (22:14 IST)
अहमदाबाद/शिमला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करिश्मे के दम पर भाजपा ने गुजरात विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड सातवीं बार जीत हासिल कर सत्ता बरकरार रखी और विपक्ष को पछाड़कर राज्य में अब तक का सबसे बड़ा बहुमत हासिल किया। भाजपा ने जहां मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के गृह राज्य में ऐतिहासिक जीत के साथ नया कीर्तिमान स्थापित किया, वहीं वह भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में करीबी लड़ाई के बाद कांग्रेस से हार गई और पर्वतीय राज्य ने लगभग चार दशकों से चली आ रही उस परंपरा को बरकरार रखा, जिसमें वह भाजपा और कांग्रेस को बारी-बारी से सत्ता सुख प्रदान करता रहा है।
 
कांग्रेस नेताओं ने हिमाचल प्रदेश में जीत का श्रेय अपनी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को दिया। पार्टी की यह जीत उसका हौसला बढ़ाने वाली है।
 
गुजरात में मोदी की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई और उन्होंने 31 चुनावी रैलियों को संबोधित कर अपने गृह राज्य में अपनी पार्टी के लिए जमकर प्रचार किया। राज्य में तीन-चौथाई से अधिक बहुमत हासिल कर भाजपा ने अब तक के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। भाजपा की आंधी में कांग्रेस राज्य में अपने सर्वाधिक निचले स्तर पर चली गई तथा बड़े-बड़े दावे करने वाली आम आदमी पार्टी (आप) भी उसे कोई टक्कर नहीं दे पाई।
 
भाजपा की गुजरात इकाई के अध्यक्ष सी आर पाटिल ने कहा कि राज्य में पार्टी के 60 वर्षीय मृदुभाषी चेहरे भूपेंद्र पटेल मुख्यमंत्री बने रहेंगे और उनका शपथग्रहण समारोह 12 दिसंबर को होगा। पटेल ने अहमदाबाद की घाटलोडिया सीट से पटेल ने 1.92 लाख मतों के भारी अंतर से जीत दर्ज की है।
 
सभी वर्गों से समर्थन पाने वाली भाजपा को गुजरात की 182 विधानसभा सीट में से 154 सीट पर जीत मिल चुकी है और खबर लिखे जाने तक वह दो सीट पर आगे चल रही थी। उसे लगभग 53 प्रतिशत मत मिले हैं, जो पश्चिमी राज्य में किसी पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड है।
 
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में 49.1 प्रतिशत मतों के साथ 99 सीट हासिल करने वाली भाजपा ने मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में 2002 में 127 सीट के अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया है।
 
माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में 1985 में कांग्रेस द्वारा जीती गईं 149 सीट का रिकॉर्ड गुजरात में किसी पार्टी का जीत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ रिकॉर्ड था, जिसे इस बार भाजपा ने तोड़कर एक नया इतिहास रच दिया है।
 
करीब 13 फीसदी मतों के साथ अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप ने पांच सीट पर जीत हासिल की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक वीडियो संदेश में कहा कि हालांकि आप ने भले ही ज्यादा सीट नहीं जीती हैं, लेकिन उसे मिले मतों ने उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलाने में मदद की है।
 
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और गुजरात के मुख्यमंत्री पटेल ने पार्टी की "ऐतिहासिक जीत" का श्रेय प्रधानमंत्री मोदी को दिया। भाजपा ने विकास एजेंडे पर ध्यान केंद्रित किया और 1995 से बिना चुनाव हारे 27 साल तक सत्ता में रहने के बाद फिर से सत्ता विरोधी लहर पर काबू पा लिया। उसने पश्चिम बंगाल में लगातार सात बार जीत के वाम मोर्चे के रिकॉर्ड की भी बराबरी कर ली है। माकपा के नेतृत्व वाले वाम मोर्चे ने 1977 से 2011 तक 34 साल तक पश्चिम बंगाल पर शासन किया था।
गुजरात में कांग्रेस ने 2017 में 77 सीट जीतकर भाजपा को अच्छी टक्कर दी थी, लेकिन इस बार वह ऐसा कुछ नहीं कर पाई। करीब 28 फीसदी मत प्रतिशत के साथ कांग्रेस ने 17 सीट पर जीत हासिल की है। दलित नेता और मौजूदा कांग्रेस विधायक जिग्नेश मेवाणी ने मतगणना के शुरुआती दौर में पिछड़ने के बाद मामूली अंतर से अपनी वडगाम सीट बरकरार रखी।
 
मंडी जिले की सिराज विधानसभा सीट से छठी बार चुनाव जीतने वाले हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि वह लोगों के जनादेश का सम्मान करते हैं। उन्होंने राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
 
कांग्रेस और भाजपा के मत प्रतिशत में एक प्रतिशत से भी कम अंतर रहा। कांग्रेस को जहां 43.9 फीसदी वोट मिले, वहीं भाजपा को 43 फीसदी वोट मिले हैं।
 
कांग्रेस नेताओं- राहुल गांधी, राजीव शुक्ला, रणदीप सुरजेवाला और आनंद शर्मा सहित अन्य नेताओं ने कांग्रेस की जीत पर हिमाचल प्रदेश के लोगों का आभार व्यक्त किया।
 
निर्वाचन आयोग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, कांग्रेस ने 68 में से 40 सीट पर जीत हासिल की, जबकि भाजपा ने 25 सीट जीती। तीन सीट पर निर्दलीय विजयी रहे। आप, जिसने 67 सीट पर उम्मीदवार उतारे थे, खाता खोलने में विफल रही और उसे केवल 1.1 प्रतिशत वोट मिले हैं।
 
काम आया मुख्यमंत्री बदलने का फॉर्मूला : पहले उत्तराखंड और अब गुजरात में सत्ता विरोधी लहर को रोकने के लिए विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्रियों को बदलने और मंत्रिमंडल के पुनर्गठन की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की रणनीति रंग लाई है।
 
पिछले साल सितंबर में, भाजपा ने पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल को गुजरात चुनाव से महज एक साल पहले विजय रूपाणी की जगह गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया था। इतना ही नहीं पार्टी ने पूरे गुजरात मंत्रिमंडल को भी बदल दिया था।
 
भाजपा के राष्ट्रीय स्तर के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि परिणाम स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं कि उत्तराखंड और गुजरात दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री बदलने से सत्ता विरोधी लहर को बेअसर करने में मदद मिली। गुजरात में मुख्यमंत्री (पाटीदार) की जाति भी काम आई।
 
विपक्ष मुख्यमंत्री बदलने को लेकर भाजपा पर अक्सर हमलावर रही है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ये बदलाव दर्शाते हैं कि भाजपा का नेतृत्व जमीनी स्तर से मिले फीडबैक के अनुसार निर्णय लेने से पीछे नहीं हटता।
 
इसी तरह, उत्तराखंड में भाजपा ने इस साल की शुरुआत में हुए विधानसभा चुनावों से पहले दो बार मुख्यमंत्री बदले थे। चुनाव में पार्टी को तो जीत मिली, लेकिन मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद पहाड़ी राज्य में उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया।
 
उक्त भाजपा नेता ने सवाल उठाया कि हिमाचल प्रदेश में भी यही कवायद क्यों नहीं की गई, जब पार्टी को पिछले साल उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा था।
 
ज्ञात हो कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा खुद हिमाचल प्रदेश के हैं और उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान वहां जमकर प्रचार भी किए थे।
 
पार्टी के इस नेता ने कहा है कि यह हैरत की बात है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष को उनके ही प्रदेश से मुख्यमंत्री को लेकर सही फीडबैक नहीं मिला।
 
भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले दो-तीन साल में मुख्यमंत्रियों को बदलने के इन निर्णयों के पीछे प्रमुख रूप से तीन कारक रहे हैं। इनमें जमीनी स्तर पर काम का असर, संगठन के साथ सामंजस्य और नेता की लोकप्रियता शामिल है।
 
भाजपा शासित कर्नाटक, मध्य प्रदेश और त्रिपुरा में 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा ने कर्नाटक और हाल ही में त्रिपुरा में अपने मुख्यमंत्री बदले हैं।
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