अहमदाबाद। गुजरात में 182 विधानसभा सीटों के करीब एक तिहाई या 61 सीटों वाले 8 जिलों में फैले मध्य क्षेत्र में आदिवासी और अत्यधिक शहरी इलाकों की मिश्रित संख्या है, जहां सत्तारूढ़ भाजपा ने 2017 के चुनावों में कांग्रेस पर अच्छी-खासी बढ़त हासिल की थी। हालांकि भाजपा इस बार तुलनात्मक रूप से मजबूत दिखाई दे रही है, लेकिन उसके लिए मध्य गुजरात बढ़त बनाए रखने की चुनौती तो है। क्योंकि आप की मौजूदगी ने इस बार मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस के इस क्षेत्र से एक वरिष्ठ आदिवासी नेता के भाजपा में शामिल होने से इस बार वह बैकफुट पर दिखायी दे रही है। मध्य गुजरात क्षेत्र में भाजपा ने 2017 के चुनावों में 37 सीटें और कांग्रेस ने 22 सीटें जीती थीं जबकि दो सीटें निर्दलीयों के खाते में गई थीं। इस क्षेत्र में 10 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) तथा 3 अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है।
शहरी इलाकों में भाजपा की मजबूत पकड़ : भाजपा ने अहमदाबाद और वडोदरा के शहरी इलाकों में अपने मजबूत समर्थन से सीटों की संख्या बढ़ाई थी और ये दोनों क्षेत्र खेड़ा, आणंद और एसटी बहुल पंचमहल जिले के साथ अब भी उसके गढ़ बने हुए हैं। मध्य क्षेत्र के 8 जिलों दाहोद, पंचमहल, वडोदरा, खेड़ा, महीसागर, आणंद, अहमदाबाद और छोटा उदयपुर में से कांग्रेस बमुश्किल 4 जिलों में ही दिखाई दी।
भाजपा ने 2017 में दाहोद जिले में चार में से तीन सीट जीती थीं, पंचमहल में 5 में से 4, वडोदरा में 10 में से 8, खेड़ा में 7 में 3, महीसागर में 2 में से 1, आणंद में 7 में से 2, छोटा उदयपुर में 3 में से 1 और अहमदाबाद में 21 में से 15 सीटें जीती थीं।
अनुसूचित जनजाति (एसटी) आरक्षित सीटों पर विपक्षी दल का प्रदर्शन बहुत उत्साहजनक नहीं रहा था। उसने ऐसी 10 में से 5 सीटें जीती थीं। 4 सीटें भाजपा और एक निर्दलीय ने जीती थी।
इस बार कांग्रेस बैकफुट पर दिखाई दे रही हैं क्योंकि आदिवासी समुदाय के उसके सबसे वरिष्ठ नेताओं में से एक और 10 बार के विधायक मोहन सिंह राठवा विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए। राठवा छोटा उदयपुर सीट से विधायक थे।
राठवा दिलाएंगे भाजपा को बढ़त : बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के प्रोफेसर अमित ढोलकिया ने कहा कि जहां तक आदिवासी सीटों का संबंध है तो नतीजों का अनुमान लगाना मुश्किल है, लेकिन राठवा के कांग्रेस छोड़ने का निश्चित तौर पर असर पड़ेगा।
ढोलकिया ने कहा कि भाजपा ने क्षेत्र में पकड़ बना ली है और वह महीसागर और दाहोद में कुछ सीटें जीतकर मजबूत साबित हुई इसलिए ऐसी सीटों पर दोनों दलों के पास समान अवसर है जो उनकी संगठनात्मक क्षमता और उम्मीदवारों की निजी लोकप्रियता पर निर्भर करता है।
एसटी आरक्षित छोटा उदयपुर से भाजपा के उम्मीदवार मोहन सिंह राठवा के पुत्र राजेंद्र सिंह राठवा ने कहा कि उनके क्षेत्र में लोग कुछ नेताओं को ही वोट देते हैं चाहे वे किसी भी पार्टी से जुड़े हो।
राजनीतिक विश्लेषक रवींद्र त्रिवेदी ने कहा कि कांग्रेस के पास मजबूत आदिवासी चेहरा नहीं है और इसलिए वह इन आदिवासी क्षेत्रों में बैकफुट पर नजर आती है।
मध्य गुजरात में शहरी फैक्टर भी भाजपा के पक्ष में है। दो अत्यधिक शहरीकृत जिले अहमदाबाद और वडोदरा के साथ ही खेड़ा, आणंद और पंचमहल जिले में भी भाजपा की पकड़ है। त्रिवेदी ने कहा कि शहरी क्षेत्र भाजपा के गढ़ हैं और रहेंगे। चुनाव जीतने के लिए आवश्यक नगर निगम, नेता, नेटवर्क और उम्मीदवार सभी मजबूती से भाजपा के साथ हैं।
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था तो उन्होंने वाराणसी (उत्तर प्रदेश) के साथ ही वडोदरा सीट को भी चुना था। (भाषा/वेबदुनिया)
Edited by: Vrijendra Singh Jhala